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Showing posts from September, 2012
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बेटियां  बेटियां  होती  घर समाज की धड़कन , हर पल खिलता इनसे घर गुलशन , समाज की बागडोर थामे बनती कुल की हरदम शान,  इनको कभी पराया न समझना ,है  यह तो हम सबकी जान !! इन्हें बस जरुरत प्यार व् विश्वास की , मत समझना इन्हें बोझ अपने समाज की , वक़्त के साथ इन्हें भी सिखाएं दौड़ने की , दहेज़ के दानवों से बचाकर रखो अपनी लाडली को ! बुढ़ापे का सहारा होती बेटियां , सुख दुःख में सहारा होती बेटियां , परिवार के दुःख में दुखी होती बेटियां , अपने गम छुपाकर सदैव हँसाती  बेटियां ! बेटी दिवस पर हम सब को बधाई !!
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ख़ामोशी  प्रकृति  की  देख  अजब पहेली , जिसकी न संग कोई सहेली , धूप छाँव संग नित्य खेली , फिर भी जाने क्यूँ  है अकेली ! भोर की बेला या दोपहर की चुभन , साँझ की लाली या रात काली इस गगन , प्रकृति  की ख़ामोशी  से रुकी धड़कन , मायाव्यी  लगते अब इसके हर उपवन ! उदासी व् क्रुन्दन  का माहोल से होती भोर  बेबसी  का आलम  छाया हर छोर  मंजिलो की तलाश में भटकता मुसाफिर  शुष्क भावनाओं की बढती भीड़ चारों ओर ! कभी हंसती थी इसकी डाली डाली , चारो ओर फैली  रहती  खुशहाली , अब देखो  विपदाओं से है बदहाली , इंसानियत  का कत्ल हो रहा गली गली ! कहीं मजहबी दंगे तो कही रोटी की लूट ,  अमानवीय मूल्यों पर चढ़ रही  युवा पीढ़ी की भेंट , शिक्षा या रोजगार आरक्षण बनाम अत्याचार का बढ़ रहे रेट, खामोशियों से न  भरें    इस बढते भ्रस्टाचार से ग्रसित लोगों के पेट  !
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संघर्ष  जीवन की लहरों पर अडिग बनना होगा चट्टान सा , वक़्त के थपेड़ों  को सहर्ष  स्वीकारना होगा , जीवन के संघर्ष  को  झेलना होगा बन  विराट  समुद्र   सा , वक़्त  पर लेने होंगे  कुछ उन्नत  निर्णय  जीवन पथ के अदृश्य  मोड़ पर बढना होगा  बादलो सा , वक़्त के दिए जख्मों को भुलाकर बढ़ना होगा , जीवन दृष्टीकोण  बदलकर  नवजीवन  की ओर इन्द्रधनुष  सा !! 
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मेरी पहचान है हिंदी   हर्षित करती ह्रदय हिंदी , हल्की न समझना हँसती हिंदी , हिमालय पर हिम समान हिंदी , झर -झर  बहती घर -घर हिंदी , अंग्रेजी को हाँका करती हिंदी , ह्रदय  को विराट करती हिंदी , सब भाषाओ से सरल हिंदी , देश प्रेमियों को भाये  हिंदी  हमारा सम्मान है हिंदी , अपने व्यवहार में लाओ हिंदी , सब भाषाओँ का सम्मान पर स्वाभिमान हिंदी , हिंदी दिवस पर न करो अपमान कहती हिंदी , मूल अपना पहचान बोलो  बस   आज  केवल हिंदी , लीडरों ,वक्ताओं  से है विनती केवल अपनाओ हिंदी, विदेश में  माना पहचान अंग्रेजी पर संस्कृति है हिंदी , याद रखें सदैव  हिन्दुस्तान की पहचान है हिंदी, आओ मिलकर हम सब कहें मेरी पहचान है हिंदी !! 
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आशा की किरण धुंधले जीवन में आई एक  आशा की किरण  बिखरे सपनो में बन उम्मीद की डगर  उड़ना है और नभ छूने  की ख़ुशी की लहर  पंगु जीवन को मिली वैसाखी  का आसरा  मन के मोती शब्दों की माला बनी अब जीवन धारा दर्द  के  रिश्ता पर वक्त की शीतल छाया !! 
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दो सखा  गूंगापन  और एकाकीपन चल रहे संग संग  आत्मा की लहरियां और शब्दों के मोती चल रहे संग  संग  ह्दय  की तस्वीरें और कागज  पर लेखनी  रहती संग संग  आपहिज तन और स्वालंबी  मन चल रहे संग संग  जीवन की शून्यता  और खोखली मुस्कराहट रहती संग संग  सपनो के झरोखे और वर्तमान का संघर्ष रहते संग  संग  नयनो के अश्रु और यादों का सागर रहते संग संग  ईर्ष्यालु प्रवृति  और परस्पर प्रतियोगी रहते संग संग !
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आस  मेरे मन की...... अपने आदर्शों से दूसरों  के स्वाभिमान  न कुचलना , अपने सोच की धरोहर से दूसरों को अपमानित न करना , अपनी बातों की महिमा में दूसरों का तिरस्कार न करना , अपनी संकुचित मानसिकता से दूसरों का हृदय अवसादित न करना ! अपनी आजादी के लिए दूसरों को पराधीन मत करना , अपना शीश के अहंकार में दूसरों के शब्दों की अवहेलना  न करना , अपने मन के भाव खिलाने में दूसरों के मन को मत रौदना , अपने तन के घाव भरने के लिए दूसरों को घाव न देना ! अपने बोझिल चिन्तन से दूसरों को हतोसाहित न करना , अपने बंजर धरती के रंज में दूसरों को रंज मत देना,  अपने पत्थर  दिल से दूसरों को प्रताड़ित न करना , अपने मन को विशाल बनाकर समाज कल्याण में तत्पर रहना !
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सदैव  मिलन -जुदाई  जीवन के अटूट सत्य सदैव , सुख -दुःख जीवन के दो प्रेरक पन्ने  रखे याद सदैव , जीवन - मरण  जीवन चक्र के अडिग नियम  हैं सदैव , उम्मीद - प्रसन्नता   डगर है अनमोल ,निभाहो  इन्हें सदैव , वक्त की सौगात हैं ये मोती ,सहर्ष  स्वीकार करो सदैव,  पल -पल  में तर्क कर अमूल्य  समय को संभालो सदैव , मिलन की मृगतृष्णा  में  जुदाई का भ्रम से बचो सदैव,  सुख की लालसा में दुखियों  से छल कपट  न करना सदैव , जीवन में सत्कर्म -मरण में मोक्ष का ध्येय  हो सैदेव , उम्मीद का दीप  व् प्रसन्नता  की बाति लाती मधुरता सदैव !!
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सफरनामा   (भाई  को समर्पित ) जीवनसंध्या में आज फिर याद आ गया बचपन  कुछ स्याह ,कुछ धूमिल सपनो में डूबा चितवन  तेरा साथ क्या छूटा , टूट गया मन दर्पण , तस्वीर में छिप गया और छलकते रहते हरदम नयन लहू का रूह से पुकार है अनमोल , गमो के सागर में ही तो इनका मोल , बीते वक़्त की भाँती कडवे इसके बोल , मौत के फरिस्तों के हृदय पट भी देता यह खोल ! वक्त के हासिये में छूट जाते हैं वो अनमोल पल रह जाते हैं बस अवसादों से भरे मन की हलचल जिन रस्तों में गूंजती थी उसकी मधुर बोलचाल आज अम्बर पर खामोशियाँ और ठहरे हुए हर ताल ! समय ने करवट बदली ..फिर आ सामने खड़ा वह आया जीवन की घुटन भरे अहसासों में बन वह मधुर साया अपने मीठे बोलों से ,बन जीवन उथान के अनमोल विश्वास काया वह भी अब क्यूँ खुली आँखों का वह सपना बन बिछड़ गया !!
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कशमकश  स्वागत था जिनका रुपहले धूप में , उन्हें वक्त के साथ अँगार बनते पाया ! भावों के साथ हुयी नाइंसाफी में , जंजीरों में शब्दों को जकड़ा पाया ! जीवन की मखमली घास की बगिया में , रिश्तों को कीकड़ सी चुभन  पाया ! सकूं थी जिनकी बातो और वादों में, रंजिशों के जुल्म का दरख्त  पाया ! भरोशा था हरदम  जिनके अस्तित्व में , उनको  शोहरत के बाजार में नीलम होते पाया ! रूहानियत के आंसुओं के सैलाब में , नरगिसी सपनों को ही बिखरा पाया ! अजनबी सा इस फूलों के चमन में , खुशबुओं  का कुटिल व्यापारी बनता पाया  ! अब रंजो गम  नही उन अहसासों में , जिन पर  रूह ने तेरा आशियाना बिखरा पाया !! 
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प्रहरी  धरती की इस विराट नगरी  में अडिग खड़ा रहता सदैव प्रहरी  पहाड़ों व् कन्दराओं में खड़े साये आतंकी  मौसम की जटिलता को सहर्ष  स्वीकारे प्रहरी मानवतावाद व् देश प्रेम तो दिखता इसमें हर घड़ी  आतंकी आक्रमण हो यदि कहीं  सीने पर हँस कर खाता  वह गोली  कुदरत  की मार गर पड़े समाज पर कभी  फिर  करता पहरेदारी बन अडिग प्रहरी  कर्तव्य पथ पर सदा बढ़ता प्रहरी  देश सुरक्षा  में समर्पित रहते ये सदा  समाज की कृपा दृष्टी को तरसते ये प्रहरी  वीरगति के बाद मिलती इनको ख्याति  नही पहचान उसकी जब तक नही पहुंचती अर्थी  इन्हें तो बस चाहत  हमारे प्रेम व् प्रोत्साहन  की  अपनी माँ का आँचल छोड़कर जाना आसन नहीं  अपनी  बहिन का स्नेह को ठुकराकर जाना सरल नहीं  अपनी हमदम  का साथ भुलाकर जाना आसन नही  अपनी मात्रभूमि पर जान न्योछावर  करना आसन नहीं  भावनाओं  को कर  ह्रदय में कैद फ़र्ज़ निभाता  प्रहरी  सेवानिरवृत पर समाज में नहीं होती उसका परिचय  मात्र फौजी का दमका टाँगे घूमता गली गली  स्वाभिमान त्याग कर जीता बन मामूली  युद्ध गाथा गर सुनाये  तो कहलाता ढोंगी  भावन
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पश्चाताप  मन की कुंठाओं  के बढ़ते अवसाद में  मनुष्य करता नित्य  दिन कुछ गलतियाँ  अपने उग्र स्वभाव के आगे तुछ  हो जाती मनुजता  जब असहाय  हो वेदना भेद जाती हृदय को  तब उन  रिसते नासूरों से उठता है पश्चाताप  निश्चल  आँसू तब भिगो जाते सारे चितवन को  पश्चाताप के डोर थामे तब क्षमादान माँगती आत्म साक्षात्कार  जब हो जाये देवतुल्य  अमृतधारा बन जाती हैं पश्चाताप के भाव  विवेक खोती  चिंतनधारा पर वैकुंठधाम  यह पश्चाताप   हर पल बढ़ते वैर वैमनस्य पर लगाता सदा विराम !