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Showing posts from September, 2013
दहेज और बेटियाँ ____________________ बड़े अरमानो से उन्होने जिस बेटी को पाला था, उसके मासूम माँगो ना कभी उन्होने टाला था , समाज धर्म निबाहने बेटी को वहाँ क्यों विदा किया ... भूखी मकड़ियों का जिस घर में बड़ा जाला था ! नए माहौल में ढलने की दीक्षा का मानो असर था , बेटी ने हर कष्ट को छुपाकर सब बेअसर किया था , मायके की खुशी की खातिर क्यों उसने बलिदान दिया ... भूखे भेड़ियों ने जब रोज उसका जीना दुश्वार किया था ! अपना हँसता खेलता परिवार उन्होने बर्बाद किया था , बेटी के दहेज की खातिर पिता ने घर को बेच दिया था , दर दर की ठोकर खाकर दामाद को चिराग क्यों समझा .... जिसने खुद अपने जालिम हाथो से पत्नी को जला दिया था ! बेटी ना रही निर्मम समाज ने भी साथ छोड़ दिया था , राख में लिपटी थी बेटी जिसे लाल जोड़े में विदा किया था , अज़ब है दुनिया की रीत क्यों उन्होने भी उसे निबाहा था ... अपने जिगर के टुकड़े को जब जानवरों के हवाले किया था ! आज दौर बदल गया पर बेटी आज भी बिकती है , क़म दहेज लाने पर लाश भी ना उसकी मिलती है , सुरक्षित नहीं बेटियाँ क्यों ना ये आग बुझ
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गुलाबी सपने  __________________ गुलाब सी नाजुक कली, बड़ी अरमानो से पली, छोड़ बाबूल की गली  पहुँची दूल्हो की नगरी जहाँ लगती थी बोली  क्रूर दहेज के लोभी... थे तौलने  बैठे ,,, उसके अरमानो की गठरी  थे जिनमें गुलाबी सपने..... हल्के थे सो बिखर गए ... गुलाब के पंखुडियों की तरह .... धन और गाड़ियों की शक्ल में .... चंद दिनो के लिए .... गुलाबी अहसासो में ... भ्रमित होने के लिए  और फिर ......... गुलाब सी उसकी जिंदगी  गुलकंद सी ...., परोसी जाती , या तोड़ी जाती , उसकी भावनाए.. मसली जाती , और फिर ....... नीरस जान  फैक दी जाती ... या जला दी जाती ... क्योंकि यह , अमानवीय व्यापार , फिर आरम्भ  होता .. फिर लगती नयी बोली , फिर एक नन्ही कली पर , जिसकी आंखो में भी तैरते , सुंदर् भविष्य के  रुपहले गुलाबी सपने , वह मासूम कली जो  युगो से बनती आई  और जाने कब तक ..., बनती  रहेगी ,,,,, दहेज लोभियों की बली !