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Showing posts from April, 2013
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मैं और तुम (  नर  और नारी ) नारी तुम मेरे जीवन संगिनी नही प्राण उर्जा हो , तुम्हारे   हर अक्ष का मैं सदा ऋणी रहा और रहूँगा,  सीता, सावित्री,अहिल्या ,कुंती ,द्रोपदी,गांधारी , सब रूपों को पाने का मैंने साहस दुस्साहस किया,  तुमने दया की सम्बल बन सदा मेरा सत्कार किया,  तुम सब रूपों में बनी भारतीय संस्कृति की परिचायक , मेरे मरने पर तुम कभी रणचंडी ,कभी सती कहलाई , मेरे हर जुल्म को तूने सहर्ष स्वीकार किया , मद मैं चूर मैंने तेरा कभी सम्मान कभी अपमान किया , मैंने तेरे तीन रूपों को सदा पूजा और पूजता रहूँगा , पर आज मै और मेरा अस्तित्व तेरी नजरों में क्यूँ गिर गया ? अपने अस्तित्व की लडाई में तूने मेरा तिरस्कार किया , बसनो को कम करना, मर्यादा की सीमा लाँघना क्यूँ तूने सीख लिया ? हम हैं महान अपनी सारी संस्कृति गौरवशाली है ,क्यूँ तूने इसे खंडित किया ? पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर तूने माँ दुर्गा का अपमान किया , आज गाली स्वरूप लगती नारी जबसे तूने मदिरा पान किया , नग्नता की सीमा लांघकर तूने क्या गौरव शोहरत हासिल किया , तेरी इस भूल देख  आज बन गयी अभिशाप हर माँ बहन बेटी पर , जैसा बोते वैसी फसल क
 एक चिंतन ---निसदिन  मद का  प्याला   पीकर भटक रहा इंसान , अपने अंतर्मन में विष घोल रहा निसदिन ! रिश्तों के बरगद पर बढ़ रही लालच की बेल , प्रीत की डोरी पर वैमनस्य की छाया पनप रही निसदिन ! धरती माँ की अनगिनत अभिशापित बेटियां , पथरायी आँखों से मुकदर का फैसला देखती निसदिन ! सफ़र ए जिन्दगी  में नीरीव रह गयी इंसानियत , अंगूरी जाम में लिप्त रहता शैतान निसदिन ! देह के सौन्दरीयकर्ण से बाधित मन , अप्राकृतिक प्रसाधनो से भ्रमित होता निसदिन ! मृत दमित मन को जगाने वाले दीप , भजनामृत का मधुर जाम पिलाते निसदिन !
BAITHE THALE मंजिल पाने के लिए बढ़ते सभी  नकरात्मक सोच से उलझते सभी  फौलादी हौसलों से मिलती राहे नयी  सकरात्मक चितन से मिटते भ्रम सभी ....सुनीता  2 इस जग में इंसानियत बेपर्दा जबसे हो गयी , उसी जग में हैवानियत मगरूर तबसे हो गयी , प्रेमी दिलों में फासले अब बढ़ने लगे , वीरानियों में अब जिन्दगी सिसकने लग गयी ! 3 जब कभी अनाज की बरबादी देख रोता किसी का मन , जब कभी देखो डूबे संताप में किसी का घर आँगन , वह जो अपना जीवन जननी मातृभूमि को समर्पित करता , तब समझ लेना वह है माटी का सच्चा उपासक किसान !. 4 माँ की दुआओ में असर इतना , बंदे को कामयाब बना देता कितना , डूबाने का खतरा कोई मोल लेता नहीं , दरिया भी देखता उसका असर इतना ! .. 5 संयुक्त परिवार को समझ बेड़ियाँ , एकल परिवार की पहन चूड़ियाँ , संस्कार विहीन हो रहा समाज , बुढ़ापा बनी अब दुःख भरी घड़ियाँ ! 6 जीवन की सरहद के उस पार प्रभु का द्वार , मानवता रुपी जहाज पर होकर सभी सवार , भूलें सभी वैर वैमनस्य का अब क्रूर खेल , दुनिया में बसा लें अमन चैन का सुंदर संसार ! 7 जिन्दगी के फलसफे में नित्य नए अनुभव , मन की गति को
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चीनी हुयी फीकी    हमको आपको मधुमेह हो न हो  जेब में नोटों की भरमार हो न हो  सरकार देखिये कितनी फिक्रमंद है  आपको  मधुमेह  से बचा रही है  भारत  समस्त विश्व  में  मीठा  देश  मिठाईयों  से  देता सबको शुभसंदेश  चीनी  को दी है  महंगाई की सौगात  करिए सभी इस  परिवर्तन का सुस्वागत  मधुमेह सम्पन्न  देश  से कुविख्यात  चीनी  महँगी हुई , होगी अब  नई  शुरुवात  जीवन में इस कृत्रिम   मिठास को  भूलें  मानवतावाद की मिठास  हर दिल में घोलें  मीठे बोलों से कर दिन की मधुर शुरुवात  फीकी चाय  मीठे वचन  में अंतर जान  रसगुल्ले  रह जायें फीके तो  नहीं कोई बात   मधुमेह  के जंजाल  से पा लो अब निजात  सभी सम्मानित प्रेरको  को सादर नमस्कार !
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कवि मन जीवन की संभावना रहस्यमयी भयावह स्मृति विस्मृति के आँचल कवि मन मन का भटकाव उन्मुक्त उड़ान का सुदृश्य दर्पण बनता कवि मन समस्यायों का सुलगना पन्नो पर उकेरना समाजसेवा हेतु अर्पित सदैव सजग कवि मन दर्द की पराकाष्ठा पर रिश्तों में सम्भावना तलाशता सदैव यह जिज्ञासु कवि मन समाज के हर रंग का अदभुत दर्शन सुनहरे सपनो का सूक्ष्मदर्शी कवि मन शब्दों का उपवन भावों का गुलशन छूता हर अंतर्मन बने समय साक्ष्य कवि मन सभी सम्मानित सदस्यों को सादर नमस्कार !
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रेत  से सपने  सपनो की उड़ान   वक्त  का पहरा  बोझिल सांसे  हौसले  बुलंद  मन की गति  चंचल   होती  यादों  की परछाईयाँ  तिलस्मी  उचाईयां  बरबस  खींचती  भटकाती ,पटकती  यथार्थ  के  बेदर्द मरुस्थल  जहाँ  सपने  बिखर जाते हैं  मन के इर्दगिर्द  निष्ठुर  रेत  समान