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Showing posts from January, 2013
मंजिल पाने के लिए बढ़ते सभी  नकरात्मक सोच से उलझते कई  फौलादी हौसलों से मिलती राहे नयी  सकरात्मक चितन से मिटते भ्रम कई  ****************सुनीता **************** हितोपदेश में निहित व्यक्ति का मन:स्तिथि  कर्मशील होने से मिलती जीवन में प्रगति  परनिंदा व् अभिमान देती आत्मा को अवनति  क्षमाशील , स्नेहशील व् सहानुभूति देती हमे उन्नति  **********************सुनीता ************************* दिल को लोग दौलत का घर बनाते अकसर  दिल को लोग रिश्तों का साम्राज्य बनाते अकसर  दिल को लोग भावनाओ का समन्दर बनाते अक्सर  हम दिल को भावमयी  रिश्तों  की दौलत से सजाते अकसर !! *************************सुनीत ा ********************* फरवरी लाई युवाओं के कई रंगीले डे , अपनी सभ्यता भूल मनाते विदेशी डे , रौंद डाली अपनी भारतीय संस्कृति ! _______________________________________________________ कल हम सभी देश वासी गणतंत्र की पावन बेला पर एकत्र होकर देश की गौरव गाथा को याद करते हुए एक परम्परा मात्र सी फिर निबाहेंगे किन्तु हम सभी क्या वाकई आजाद भारत के निवासी हैं ! शायद हाँ और शायद नहीं ........इस प्रश्न
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शिक्षण क्षेत्र व् लेखन क्षेत्र के मध्य अन्तर्द्वन्द को भावों में उतारने का पर्यास ! जीवन अजीब उदासीन यादों की अनचाही अग्नि जिसके धुंए की घुटन ताउम्र पीछा करती रुलाती करहाती पर चिता का इन्तजार करती एक अहसास सी .... नयी चेतना की अलख कोहरे सी अंतहीन निशब्द अनन्त की तलाश भटकती रूह अंतहीन बेपरवाह सपनो की उड़ान ......!!  
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__________ चूहा तेरे मेरे बीच की हो सैकड़ो दूरी हरदम लडकर  मिटाते  दूरी  प्यारे नटखट बिल्ले  तेरी क्या है मजबूरी  होली पर कर लूँगा मैं  भी मुरादे  पूरी  जंगल  के रिश्तों में  तुम हो  बड़े  पर  हो फिर भी बहुत नखचढ़े  छोटे  के शिकार छीनकर  रहते क्यों अकड़े  तेरे हाथ में बन्दूक तो  मेरे हाथ भी नहीं जकड़े  मैं  तो  नन्हा  फूल  तुम हो  वृक्ष  छायादार  मेरी ठिठोली  पर क्रोधित  होकर न बनो खूंखार  खून तुमारा और मेरा  बहेगा तो मचेगा  हाहाकार  बस्ती  उजड़ेगी ,उपद्रव  बढेगे  और मिलेगी केवल धिक्कार  बिल्ला  अरे चूहे है तो छोटा   पर है  तू बड़ा खोटा  देख मुझे  बदलता तू अपनी बात  ओ बिन पैंदे  का लोटा  मेरा भोजन  चुरा चुराकर  बन रहा तू  मोटा  भाग यहाँ से  दूं नहीं तो  तुझे मैं  एक  सोटा  चूहे  तू है बहुत अच्छा  लगता है तू मेरा  बच्चा  पर बड़े  साहबों को मुझे भी दिखाना  होता  परचा  द्वेष  नही हृदय में  बस  शान  जताने  में देता हूँ गच्चा  दिन भर करता रहता मुझे परेशान पर है तू  सच्चा   इन मानवों की अंधेर नगरी में  देखा धरा लूटी  दोस्त बनकर र
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********************-माँ गंगा***************************  वही  पहचान सकता है ,माँ गंगा की निर्मलता जिसे परखना आता है , उसके मन की कोमलता  यदि महसूस करना है ,उसकी पवित्रता की भावना , पूछो पावन करती जो ,तुम्हारे ह्रदय की कोमलता , हरेक पाप धोती है ,मिटाती सबके जीवन के संताप , उपेक्षित जीवन जीती है ,फिर भी बढाती  जल की  कोमलता , हर पल रोती  है ,देख अपने स्नेह बलिदान की कीमत , जिसे पूजनीय  रहना था ,गंदगी देख  मिट रही उसकी कोमलता , हमको सिखाती   है जो जीवन चक्र की निरन्तरता , उसे निश्चल समझकर विषाक्त  कर रहे हम उसकी धाराओं की कोमलता !
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TADKESHWAR     MAHADEV   TEMPLE TADKESHWAR  temple is dedicated to LORD SHIVA ,is situated in a cup shaped valley surrounded by Deodar trees .Located at the height of 1800m is a place of salvation.It is about 12 kms distant from lansdowne . It is about 600 years old sacred shrine refered as Shiva shidh peeth .It is surrounded with beautiful forest of blue pine deodar and oak .One of the ancient Shiva temple is perfect place for trekking ,bird watching and ideal location for nature lover ..Though the road to temple is barely fit for driving . The road is quite narrow and breathtaking and having landslides being constantly repaired still have to be very mentally alert to avert mishappenings. The road to Tadkeshwar is more or less deserted as there is no habitation along the way and neither can we find tea shops . The environment is serene ,quite filled with vibrant energy. around one km walk to the shrine has narrow paved path . Before we arrive at the shrine ,its really hard
जीवन के सुंदर उपवन में , संगी साथी गाते मस्त बहारों में,  सुख दुःख को बखूबी निभाते वे , धोखे की फितरत न रखे वे , उम्र के हर पडाव में रहते साथ हैं , सच्ची मित्रता सबको लुभाती है , आओ सभी इस टोली में शामिल हो , दुनिया से यदि वैर वैमनस्य मिटाना हो ! *********************************** प्रगति की दिशा में अनुशाषित बढ़ रहे सभी , सुसंस्कृत व् एकता के भाव को अपनाये सभी , पर ठहरो इस भीड़ में छिपा है अन्धकार कहीं , पैनी नजरो से खोजो इस भारत के दुश्मन को अभी , . बच्चों का बचपन छीनकर करें न ये मनमानी कभी , देश की सुरक्षा न हो जाये खंडित कहीं , वतन रहे सुरक्षित अगर हम जाग जायें अभी , जागो , भीड़ में भीड़ बनकर न रह जायें सभी , सजग होकर भीड़ में खड़े दुश्मन को पहचाने अभी ! ********************************************   दोस्त मिले हो बर्षों बाद ,  अबके निभाना हरदम साथ ! मैं तो क्लर्क छोटा सा , तुम बन गए हो मेरे साहब ! मैं तो सुदामा इस युग का , तुम बन कर दिखाओ द्वापरी कृष्ण ! कलयुगी कालिख दोस्ती पर , तुम खिलाओ श्वेत स्नेह कमल ! दुनिया मैं फिर कायम होगा , हाथ से यु मिलाएं हाथ बनके
*****************त्रासदी एक माँ की ************************ जिन तीन लालों को अपने दूध व् लहू से सींचा मैंने  अपनी त्रासदी भुलाकर  हरदम उन्हें  हंसाया मैंने  अपनी सूनी गोद देखकर  सोच रही क्या पाया मैंने  वतन की रक्षा  की राह दिखाकर  खुद को रुलाया मैंने  एक लाल  को मिटा दिया  देश की आन की खातिर मैंने  दूसरे  को  खुद मार दिया  देश की बेटियों की लाज हेतु मैंने  तीसरे ने वृद्धा  आश्रम  दिखा दिया , जिसको सबसे अधिक चाहा  मैंने  हे धरती माँ  , मेरी  कहानी तो छोटी पर तेरे लिए  जहाँ  लुटा दी मैंने !
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1 न समाज बदलेगा ,न लोग बदलेंगे  न सोच बदलेगी , न दिशा बदलेगी  न अपराध रुकेंगे , न दहशत रुकेगी  न कुरीतियाँ बदलेगी , न नीतियाँ बदलेगी  न तन्त्र बदलेगा , न आक्रोश का असर दिखेगा  न जाने कब लोग जागेंगे , न जाने कब सुबह होगी !! !! ***************सुनीता *************   2  उठो जागो यु चुप न बैठो , देश व् दिशा तुम बदलोगे  गर जीना हो सकूं से तो आत्म मंथन तुम्हे करोगे , नशा ,हत्याएं ,अपहरण व् अनैतिकता को तुम्ही बदलोगे , सूर्य विजय का दिखेगा जब कदम से कदम तुम मिलाओगे , कलके भरोसे न बैठो तुम ,जीत का ध्वजा तब फैराओगे , जीवन तब सबका उन्नत होगा जब सबकी पीड़ा तुम समझोगे !! *****************सुनीता ******************
चिन्तन  समाज  का दर्पण हैं नर  नारी , चलती है जिससे दुनिया सारी  , विश्वास  के पहिये पर चलती गाड़ी  अनैतिक मूल्यों पर पड़  रही अब भारी , हाथों में लिए हाथ बढाओ स्नेह डोरी , सृजक का अपमान न कर बनके व्यापारी , जीवन चक्र को कुचलने की न शक्ति तुम्हारी , विपदा में नारी भोग्या  बन रह गयी बेचारी , अनैतिक नरों  का चिन्तन बढ़ा  रही है लाचारी , संस्कृति  का मान बढायें  ,बुझे न अब दामिनी की चिंगारी . भविष्य की नीव रखे अभी,  बनेगा तब जीवन गुणकारी !