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साहित्य सृजन *********** एक ग्रंथ छुपा सभी के अंतस में , माँ शारदे की कृपा बरसने से , खुलता सृजन कपाट .. जिससे निकालते असंख्य .... कल्पना के पंछी जो ... शब्दों की शक्ल में . . अंकित होते कागजों में .... पर ये मात्र पन्ने नहीं ...... होता सृजनकर्ता का कोमल हृदय , जो है सवेदनाओ का अनूठा संसार , पर शायद वह नहीं जानता कि .. साहित्य सृजन नहीं सरल , जो आज हैं उनसे होता संघर्ष निरंतर , अपने अस्तित्व कि तलाश में , सहने पड़ते हैं असंख्य ... वक़्त के थपेड़े .. साहित्यकारों के व्यंगबाण... बनते है जो अवरोध , एक चट्टान की भांती , उस नदी पर जो ... मनमौजी है , सरल है , नहीं जानती कि.. साहित्य क़ी डगर है कठिन , सागर तक पहुंचने में उसे पार करने हैं , छोटे से बड़े सभी , अडिग प्रहरियों को , जो समझते हैं ... सीमा को अपनी धरोहर , भ्रम में जीते जो अक्सर कि.. उनसे अच्छा व सच्चा कोई नहीं है , नहीं समझते जो सृष्टि का नियम ... जो कल थे वे आज नहीं हैं , जो आज हैं , उन्हे भी पीछे हटना होगा ... वैसे ही जैसे .... बागों म