सफरनामा  (भाई  को समर्पित )

जीवनसंध्या में आज फिर याद आ गया बचपन 
कुछ स्याह ,कुछ धूमिल सपनो में डूबा चितवन 
तेरा साथ क्या छूटा , टूट गया मन दर्पण ,
तस्वीर में छिप गया और छलकते रहते हरदम नयन

लहू का रूह से पुकार है अनमोल ,
गमो के सागर में ही तो इनका मोल ,
बीते वक़्त की भाँती कडवे इसके बोल ,
मौत के फरिस्तों के हृदय पट भी देता यह खोल !

वक्त के हासिये में छूट जाते हैं वो अनमोल पल
रह जाते हैं बस अवसादों से भरे मन की हलचल
जिन रस्तों में गूंजती थी उसकी मधुर बोलचाल
आज अम्बर पर खामोशियाँ और ठहरे हुए हर ताल !

समय ने करवट बदली ..फिर आ सामने खड़ा वह आया
जीवन की घुटन भरे अहसासों में बन वह मधुर साया
अपने मीठे बोलों से ,बन जीवन उथान के अनमोल विश्वास काया
वह भी अब क्यूँ खुली आँखों का वह सपना बन बिछड़ गया !!

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