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गरीबी की कहानी सर्दियों में अर्ध वसन देह का संतोष सहारा चीथरों के भीतर होता ठण्ड का बसेरा सुबह और रात शीत की पीड़ा बनती लुटेरा बिजली के खबों तले ढूंढे गर्मी का सहारा भोजन का न उसका कोई ठिकाना जूठन व् बासी अन्न में वह ढूंढें सहारा पेट की आग को अक्सर पानी से बुझाता हर पल एक दूजे को देख देते दिलासा सर्दियों की ठंड में एक मैली चादर में सिमटे बच्चे दिन भर के काम के बाद नींद कहाँ ,सपने बुनते बच्चे किटकिटाते दांत , कंपकंपाती देह सहते बच्चे ठण्ड की बयार को मजबूरन सहते लाचार बच्चे नित्य सवेरे पानी भरने कतार लगाते उसी वसन में नहाते और काम पर जाते सारा दिन फिर उसी में गुजार देते फिर भी चेहरे पर असहाय मुस्कान भरते बड़ी ऊँची इमारत देख हतप्रभ रहते टपकती ...