उत्पीडित नारी
जीवन के हर घटते पलों को हरदम मैंने आंसुओं से सीचा ,
दुखों के सैलाब में कभी भूल से भी न दिखाया किसीको नीचा ,
हे तारणहार तेरी इस दुनिया में नारी को ही उत्पीडन सहना पड़ता ,
मेरी सिसकियाँ और करुण पुकार ,किसी का हृदय न द्रवित करता ,
क्रूरता से तमाशबीन बने लोगों की सोयी आत्मा सोते से नहीं कोई जगाता ,
दूसरों के दुःख में लोग कैसे बना लेते उनपर ढेरो कहानिया या किस्सा ,
है विनती बस इतनी इन संवेदनहीन लोगों के हिस्से में न भरना तू क्षमादान ! 18/12/12
सदियों से नारी का घर, बाज़ार ,दफ्तर ,रेलों और अब बस में भी कोई सुरक्षा नहीं ...तो फिर नारी का अस्तितिव क्या है ....आपके विचार सादर अपेक्षित !