रूह की कसक 

यूँ मिलकर तेरा  बिछड़ना  कसक  बन गयी धडकनों  पर ,
वो   बतियाना और खिलखिलाना   सांझ से  भोर  तक ,
कभी गिरने  व्  लड़खड़ाने  में  तेरे  मजबूत  इरादे पर ,
रूह   के  सुंदर  नीड  बसने  व्  आँधी   से  उजड़ने  तक ,
सूनी  सड़कों  में  तेरे हौले  से बढ़ते कदमों की आहट  पर ,
मेरी  सिसकियों  व्   तेरी  हिचकियों  से भरी  बातों तक ,
लड़ते  झगड़ने  में  तेरा तस्वीरों को छुपाना और बदलने पर ,
घर  की  खिड़की  से  बाहर  घंटो  अपलक  तेरे  इन्तजार तक ,
भोर की किरण   और गोधूली  की वेला में  तेरे होने  के अहसास  पर ,
रूठ  गयीं  बहारे  बनकर जीवन  भर  की  रूह  की  कसक  तक !

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