जख्म 
दुनिया भी क्या है ,
एक भीड़ है  मेला  है ,
फिर भी इंसान ,
निपट अकेला है ,
बाटों   में बटोही ,
एक आस जगा जाते हैं ,
स्याह रातों के बाद फिर ,
घातक  अँधेरा   है ,
सपने जो बिखरी पड़े हैं ,
टूटे आईने की शक्ल में ,
अपने से ही लगते हैं ,
जबसे वीराने में ,
परिंदों के नीड को देखा है ,
बीते कल की यायावरी ,
बेपरवाह अंतहीन उड़ान ,
हर सांस पर 
तुम्हारे प्यार का पहरा है ,
आज समझ पाएं हैं ,
दर्द के इस नए रिश्ते को ,
लगता है ये जख्म ,
उस जख्म से गहरा है !

अपनों की मृत्यु पर अग्नि के साथ  देह का रिश्ता खत्म हो जाता हैं किन्तु  रूह तो अजर अमर है  , उससे जुडी यादों की कसक जीवन भर रहती  हैं जिसकी वेदना की चुभन  तो मिटती ही नहीं है !

Popular posts from this blog