चिन्तन
समाज का दर्पण हैं नर नारी ,
चलती है जिससे दुनिया सारी ,
विश्वास के पहिये पर चलती गाड़ी
अनैतिक मूल्यों पर पड़ रही अब भारी ,
हाथों में लिए हाथ बढाओ स्नेह डोरी ,
सृजक का अपमान न कर बनके व्यापारी ,
जीवन चक्र को कुचलने की न शक्ति तुम्हारी ,
विपदा में नारी भोग्या बन रह गयी बेचारी ,
अनैतिक नरों का चिन्तन बढ़ा रही है लाचारी ,
संस्कृति का मान बढायें ,बुझे न अब दामिनी की चिंगारी .
भविष्य की नीव रखे अभी, बनेगा तब जीवन गुणकारी !