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चूहा

तेरे मेरे बीच की हो सैकड़ो दूरी
हरदम लडकर  मिटाते  दूरी 
प्यारे नटखट बिल्ले  तेरी क्या है मजबूरी 
होली पर कर लूँगा मैं  भी मुरादे  पूरी 

जंगल  के रिश्तों में  तुम हो  बड़े 
पर  हो फिर भी बहुत नखचढ़े 
छोटे  के शिकार छीनकर  रहते क्यों अकड़े 
तेरे हाथ में बन्दूक तो  मेरे हाथ भी नहीं जकड़े 

मैं  तो  नन्हा  फूल  तुम हो  वृक्ष  छायादार 
मेरी ठिठोली  पर क्रोधित  होकर न बनो खूंखार 
खून तुमारा और मेरा  बहेगा तो मचेगा  हाहाकार 
बस्ती  उजड़ेगी ,उपद्रव  बढेगे  और मिलेगी केवल धिक्कार 

बिल्ला 
अरे चूहे है तो छोटा   पर है  तू बड़ा खोटा 
देख मुझे  बदलता तू अपनी बात  ओ बिन पैंदे  का लोटा 
मेरा भोजन  चुरा चुराकर  बन रहा तू  मोटा 
भाग यहाँ से  दूं नहीं तो  तुझे मैं  एक  सोटा 

चूहे  तू है बहुत अच्छा  लगता है तू मेरा  बच्चा 
पर बड़े  साहबों को मुझे भी दिखाना  होता  परचा 
द्वेष  नही हृदय में  बस  शान  जताने  में देता हूँ गच्चा 
दिन भर करता रहता मुझे परेशान पर है तू  सच्चा 

 इन मानवों की अंधेर नगरी में  देखा धरा लूटी 
दोस्त बनकर रहते हैं रखकर बगल में छुरी 
वतनो  में जंग छिड़ती होती  कितने घर सूने 
सन्देश  देती हमारी दोस्ती  मिटाओ दिलो की दूरी !

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