********************-माँ गंगा***************************
वही पहचान सकता है ,माँ गंगा की निर्मलता
जिसे परखना आता है , उसके मन की कोमलता
यदि महसूस करना है ,उसकी पवित्रता की भावना ,
पूछो पावन करती जो ,तुम्हारे ह्रदय की कोमलता ,
हरेक पाप धोती है ,मिटाती सबके जीवन के संताप ,
उपेक्षित जीवन जीती है ,फिर भी बढाती जल की कोमलता ,
हर पल रोती है ,देख अपने स्नेह बलिदान की कीमत ,
जिसे पूजनीय रहना था ,गंदगी देख मिट रही उसकी कोमलता ,
हमको सिखाती है जो जीवन चक्र की निरन्तरता ,
उसे निश्चल समझकर विषाक्त कर रहे हम उसकी धाराओं की कोमलता !