चित्कारती धरती गरजता आसमां दहला रही अंतर्मन क्यूकर विश्वाश करे मनुजता खो गयी कहीं आज की संवेदनहीनता कागजी भावनाएं मुर्दादिल इंसान वहशी ख्वाहिशे चारो ओर त्राहिमाम !
Posts
Showing posts from June, 2013
- Get link
- X
- Other Apps
बादल आसमा में बादल होते आँसू धरती माँ की आँखों के, उसकी सब्र का बंधन फटता देख बढ़ते अत्याचार को , वही प्रतिशोध बादल बनती विपदा बाढ़ इंसान पर , कुछ पलों में फिर देती वही सबक इंसान को , चारों तरफ पानी पानी का प्रलय दिखाती , घर बह जाते,जीवन मिट जाते,त्रासदी दिखाती इंसान को , फिर भी जारी है इंसान का प्रकृति से खिलवाड़ का खेल , वर्षों से सचेत कर रही प्रकृति मूढ़ अहंकारी इंसान को , अपने ही हाथो से नष्ठ कर रहा इंसान मानव सभ्यता का , खोखली धरती ले रही प्रतिशोध जिसे भोगना पड़ेगा इंसान को ....:(
- Get link
- X
- Other Apps
मुफलिसी इस धरा पर रोटी समान मेरे जीवन ने , नित्य नए नए अनुभव जिए हैं , पकती ,फूलती और जलती रोटी सी , मैंने हालात से समझौते किये है ! सपनो का महल अब उजड़ गया , जबसे हाथ तुम्हारा थामा है , जीवन में हर पल खाया धोखा , जबसे तुम पर अटूट विश्वास किया है ! मुफलिसी भरे इस जीवन में , दिल रोज गागर भर रोता है , घर के बच्चे- बूढ़े भूखे पेट सोते , पर यारों के लिए रोटी सिकती है ! सूखी रोटी से निराश होकर , क्यूँ सब पर कहर बरपाते हो ? निराश जीवन को नशे में डुबोकर , क्या किसी ने कभी सुख पाया है ? माँ बाबा से क्या शिकायत करूँ जब , दहेज का आभाव मुझे यहाँ लाया है , जीवन भर बदलाव की एक आस लिए , कम खर्चों में घर हरदम सम्भाला है ! कोई नहीं समझा मेरी पीड़ा को , हमसफर ही जब साथ नहीं है , गरीबी की आग में झुलस रही , ख़ुशी की अब कोई आस नहीं है !
- Get link
- X
- Other Apps
ममता का सागर ______________ माँ होती ... ममता का सागर अपनी कोमल लहरों के ममत्व से .. अपनी संतानों को जीवन तूफानों से हर पल बचाती , उसकी शांत लहरे और गरजते स्वर , में बच्चो की परवाह सागर की भाँती कभी शांत और गंभीर , तो कभी ...... हैरत करती आवेग का प्रचंड प्रवाह मानो अपने सृजन को नस्ट करने को आतुर ... किन्तु अपने भीतर ..... ज्वार भाटा समान अनगिनत राज छिपाकर जीवन के सुलभ मोती ममतामयी छाया देती , सदियों से माँ एक शाश्वत सत्य समुद्र की समदर्शी सुख दुःख की लहरों में अमूल्य निधि !
- Get link
- X
- Other Apps
तकदीर की तदबीर माँ भारती की तकदीर की तदबीर आज बदल डालेंगे , रेत के पन्नो पर जीवन की नई तस्वीर बना लेंगे ! मृत भावनाओं की बढती विस्तृत मरुभूमि पर , सब मिलकर विश्वास धर्म का सावन बरसा देंगे ! बिखरते रेत से कठिन इस जीवन डगर पर , हम मिलकर भजनामृत का समर ताल ढूंढ लेंगे ! धरा पर शुष्क चट्टानों सी मृत मानवता पर , सौहाद्र के आदर्शों की अब फसल उगा लेंगे ! आज जीवन धूप के विषधर बाणों की शैया पर , सम्भावनाओं की मखमली कालीन बिछा लेंगे ! निसदिन आतंक के सायों से उजड़ते घरौंदों पर , इंसानियत की असख्य मरु कश्तियाँ बढ़ा लेंगे ! माँ भारती के स्वर्णिम आँचल परमिलकर हम सभी , शांति व् भाईचारे और विश्वास के सितारे बुन लेंगे !