बादल 

आसमा में बादल होते आँसू धरती माँ की आँखों के,
उसकी सब्र का बंधन फटता देख बढ़ते अत्याचार को , 
वही प्रतिशोध बादल बनती विपदा बाढ़ इंसान पर ,
कुछ पलों में फिर देती वही सबक इंसान को ,
चारों तरफ पानी पानी का प्रलय दिखाती ,
घर बह जाते,जीवन मिट जाते,त्रासदी दिखाती इंसान को ,
फिर भी जारी है इंसान का प्रकृति से खिलवाड़ का खेल ,
वर्षों से सचेत कर रही प्रकृति मूढ़ अहंकारी इंसान को ,
अपने ही हाथो से नष्ठ कर रहा इंसान मानव सभ्यता का ,
खोखली धरती ले रही प्रतिशोध जिसे भोगना पड़ेगा इंसान को ....:(

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