चित्कारती धरती
गरजता आसमां
दहला रही अंतर्मन
क्यूकर विश्वाश करे
मनुजता खो गयी कहीं
आज की संवेदनहीनता
कागजी भावनाएं
मुर्दादिल इंसान
वहशी ख्वाहिशे
चारो ओर त्राहिमाम !
गरजता आसमां
दहला रही अंतर्मन
क्यूकर विश्वाश करे
मनुजता खो गयी कहीं
आज की संवेदनहीनता
कागजी भावनाएं
मुर्दादिल इंसान
वहशी ख्वाहिशे
चारो ओर त्राहिमाम !