एक चिंतन ---निसदिन
मद का प्याला पीकर भटक रहा इंसान ,
अपने अंतर्मन में विष घोल रहा निसदिन !
रिश्तों के बरगद पर बढ़ रही लालच की बेल ,
प्रीत की डोरी पर वैमनस्य की छाया पनप रही निसदिन !
धरती माँ की अनगिनत अभिशापित बेटियां ,
पथरायी आँखों से मुकदर का फैसला देखती निसदिन !
सफ़र ए जिन्दगी में नीरीव रह गयी इंसानियत ,
अंगूरी जाम में लिप्त रहता शैतान निसदिन !
देह के सौन्दरीयकर्ण से बाधित मन ,
अप्राकृतिक प्रसाधनो से भ्रमित होता निसदिन !
मृत दमित मन को जगाने वाले दीप ,
भजनामृत का मधुर जाम पिलाते निसदिन !
अपने अंतर्मन में विष घोल रहा निसदिन !
रिश्तों के बरगद पर बढ़ रही लालच की बेल ,
प्रीत की डोरी पर वैमनस्य की छाया पनप रही निसदिन !
धरती माँ की अनगिनत अभिशापित बेटियां ,
पथरायी आँखों से मुकदर का फैसला देखती निसदिन !
सफ़र ए जिन्दगी में नीरीव रह गयी इंसानियत ,
अंगूरी जाम में लिप्त रहता शैतान निसदिन !
देह के सौन्दरीयकर्ण से बाधित मन ,
अप्राकृतिक प्रसाधनो से भ्रमित होता निसदिन !
मृत दमित मन को जगाने वाले दीप ,
भजनामृत का मधुर जाम पिलाते निसदिन !