मैं और तुम ( नर और नारी )

नारी तुम मेरे जीवन संगिनी नही प्राण उर्जा हो ,
तुम्हारे  हर अक्ष का मैं सदा ऋणी रहा और रहूँगा, 
सीता, सावित्री,अहिल्या ,कुंती ,द्रोपदी,गांधारी ,
सब रूपों को पाने का मैंने साहस दुस्साहस किया, 
तुमने दया की सम्बल बन सदा मेरा सत्कार किया, 
तुम सब रूपों में बनी भारतीय संस्कृति की परिचायक ,
मेरे मरने पर तुम कभी रणचंडी ,कभी सती कहलाई ,
मेरे हर जुल्म को तूने सहर्ष स्वीकार किया ,
मद मैं चूर मैंने तेरा कभी सम्मान कभी अपमान किया ,
मैंने तेरे तीन रूपों को सदा पूजा और पूजता रहूँगा ,
पर आज मै और मेरा अस्तित्व तेरी नजरों में क्यूँ गिर गया ?
अपने अस्तित्व की लडाई में तूने मेरा तिरस्कार किया ,
बसनो को कम करना, मर्यादा की सीमा लाँघना क्यूँ तूने सीख लिया ?
हम हैं महान अपनी सारी संस्कृति गौरवशाली है ,क्यूँ तूने इसे खंडित किया ?
पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर तूने माँ दुर्गा का अपमान किया ,
आज गाली स्वरूप लगती नारी जबसे तूने मदिरा पान किया ,
नग्नता की सीमा लांघकर तूने क्या गौरव शोहरत हासिल किया ,
तेरी इस भूल देख  आज बन गयी अभिशाप हर माँ बहन बेटी पर ,
जैसा बोते वैसी फसल कटे कैसे तू इस मन्त्र को भूल गयी ,
मुझ पर आरोप लगा लगाकर तूने मुझे मजबूर किया ,
आज मुझे दुर्योधन बना गली गली क्यूँ अपमानित कर रही ,
देह श्रृंगार की तेरी पिपासा की मर्यादा तूने ही तो भंग किया ,
आज मैं और मेरा आचरण जाने क्यूँ विभस्त हुआ ,
आ चल बैठ पास मेरे ,अपने अपने मन की बात कहें 
संस्कृति की मर्यादा को फिर से नव जीवन दान दें ,
जीवन सुख दुःख की गाडी नहीं चलती एकाकी ,
कुछ मैं बदलूँ ,कुछ तुम सुधरो ,जीवन नवीन करें ,
तुम मेरी धडकन ,तुम मेरा जीवन श्रृंगार हो ,
तुमारे लिए अब भी राँझा ,और तुम मेरी हीरी हो ,
राधा रुक्मणी स्वरूप तुम मेरी अराध्य हो ,
तुमसे मेरा जीवन ,तुम धरा की अनमोल संगिनी ,
नए इतिहास निर्माण में त्यागकर अपना कलुषित व्यवहार ,
आओ मिलजुलकर भारतीय संस्कृति का नव निर्माण करें !

Popular posts from this blog