जीवन उद्धार दुखो से डर कर कभी, देखो तुम न मायूस होना , दूसरों की खुशनसीबी देख कभी आँखें नम न करना ! इस स्वार्थी जगत में , निंदा से कभी न विचलित होना , सत्य की डगर मुश्किल है , झूठ के आगे न कभी शीश नवाना , उच्च चिन्तन के बहाव में , समाज सुधार हेतु सदैव प्रेरित होना , जीवन की सुख दुःख धारा में , तुम ज्ञान की ज्योत जलाना ! दीन दुखियों की सेवा में , तुम कभी हतास मत होना , दूसरों के जीवन उद्धार में , कभी तुम अपना ईमान न डगमगाना ! खतरों से घबराकर ,कर्तव्य पथ से कभी विचलित न होना , स्वहित त्याग कर ही तुम भी सबके संग हरदम मुस्कुराना !
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Showing posts from May, 2013
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बदलते वक्त में कलमकार. कलमकार के शब्दों में अब समाज कैसे प्रतिबिंबित हो, रोटी के जुगाड़ में कागज और स्याही भी जब रूठी हो, जब दुनिया के अफ़साने लिखने की कीमत भी न मिले, अपने ही बिखरे सपनों को देख मन क्यों न द्रवित हो। समाज की धड़कन कलमकार की पूछ जब न होती हो, सच को सच लिखने वालों की जब न कद्र होती हो, जीवन के विद्यालय में जब अँधेरे में छुपना पड़ जाए, भ्रष्टाचार से बिकती कलामों पर मन द्रवित क्यों न हो। कलमकार के शब्दों में जब इंसानियत ही मिटने लगे, वेदनाओं को अब चाटुकारिता का आडम्बर प्यारा लगे। कलमकार के जीवन में रसखान बनना है आसान नहीं, भरकर उदासी जेबों में लेखन करने में कोई शान नहीं, सच की धारा में अपना अस्तित्व निखार लेना मुश्किल, एवरेस्ट की चोटी चढ़ना जैसा भी दुष्कर है काम नही । कलमकार को बदलते वक़्त के साथ कदम मिलाना होगा, सत्य और निष्ठा के प्रति हर दायित्व को निबाहना होगा। सामाजिक विसंगतियों से उसको समाज को बचाना होगा, अपनी कलम की धार से सब कुरीतियाँ नष्ठ करना होगा।
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प्रेम प्रेम तो है जीवन श्रृंगार , लाती है खुशियों की बहार , अंतर्मन में बसती सौंधी खुशबू सी , सुदृढ़ रिश्तों का उत्तम आधार ! सुंदर गीतों से झंकृत संसार , प्रेम के बोल हैं जिसके श्रृंगार , जीवन में प्रेम है ब्रह्मानंद , खोलती सदा उन्नति के द्वार ! प्रेम भावनाओ का है संसार , सुंदर अहसासों का सुदृश्य द्वार , खिलता जिससे मन आँगन , दिलों का होता जिससे सुंदर श्रृंगार !
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ग्राम की शान यादों के पन्नो से , बचपन की गलियारों में , गाँव की सोंधी माटी की , पावन खुशबू , खो गयी शहर के प्रदूषण में ! भोर की किरणों संग , खिलता था हर घर आँगन , प्रकृति के हर जीव की गूंजती थी , मधुर संगीत , खो गयी शहरी वाहनों के शोर में ! पनघट पर गाती नार , मिलकर करते थे हर कार्य , गाँव की बन धडकन देती थी , एकता का संचार , खो गयी शहरी स्वार्थी गलियों में ! चरवाहों की हंकार मवेशियों के हर दल का कूदना फाँदना बनता था , जीवन की मुस्कान , खो गयी शहरी आपाधापी में ! बैलगाड़ी की टन टन , बच्चों की मस्ती की सवारी बन , ग्राम अर्थव्यवस्था का होता साधन , ग्राम की शान , खो गयी वाहनों के बढ़ते रैले में ! प्रेम और सौहादर्य का प्रतीक , ग्रामीणों का सादगी भरा जीवन , आम पीपल की छाँव तले , बढ़ता जिनका बचपन , खो गया शहरी आधुनिकता के प्रवाह में ! आज शहरी चकाचौंध से दूर , परिकल्पनाओं के आंगन में , ढूंढ रही यादों की अमिट छाप , वे अनमोल क्षण खो गए जो शहरी जीवन की दिनचर्या में !
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मानवता जग पर पल पल बढ़ते जीवन संघर्ष , धरा पर कैसे हो फिर मानव उत्कर्ष , कलुषित मानवता की परिणिति से बाधित , क्या फिर से मात्र युद्ध होगा निष्कर्ष ? मृत आदर्शों की आधारशिला , जर्जर कर रही जनजीवन , संस्कृति विकास को न्योछावर , जरूरी एक सजग सुगठित संगठन ! जीवन गति का अवरोध क्रोध , मानव साम्राज्य का विध्वंशक , नव संस्कृति निर्माण की लगायें पौध , कारवाँ बढे मानवता बने उसकी परिचायक ! भू प्रेमी निष्ठुर मन का काफिला , बढ़ा रहा अपना आतंक साम्राज्य , दैत्य वंशज का न हो विस्तारण , बढाओ मनुजता दल का निडर साम्राज्य ! बढ़ते आतंक के मरुस्थल पर , मानवता की फसल लगाओ , खून की नदी बहाने वालों को , आत्म निरिक्षण का सुमार्ग दिखाओ !