मानवता


जग पर पल पल बढ़ते जीवन संघर्ष ,
धरा पर कैसे हो फिर मानव उत्कर्ष ,
कलुषित मानवता की परिणिति से बाधित ,
क्या फिर से मात्र युद्ध होगा निष्कर्ष ?

मृत आदर्शों की आधारशिला ,
जर्जर कर रही जनजीवन ,
संस्कृति विकास को न्योछावर ,
जरूरी एक सजग सुगठित संगठन !

जीवन गति का अवरोध क्रोध ,
मानव साम्राज्य का विध्वंशक ,
नव संस्कृति निर्माण की लगायें पौध ,
कारवाँ बढे मानवता बने उसकी परिचायक !

भू प्रेमी निष्ठुर मन का काफिला ,
बढ़ा रहा अपना आतंक साम्राज्य ,
दैत्य वंशज का न हो विस्तारण ,
बढाओ मनुजता दल का निडर साम्राज्य !

बढ़ते आतंक के मरुस्थल पर ,
मानवता की फसल लगाओ ,
खून की नदी बहाने वालों को ,
आत्म निरिक्षण का सुमार्ग दिखाओ !

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