बदलते वक्त में कलमकार.
कलमकार के शब्दों में अब समाज कैसे प्रतिबिंबित हो,
रोटी के जुगाड़ में कागज और स्याही भी जब रूठी हो,
जब दुनिया के अफ़साने लिखने की कीमत भी न मिले,
अपने ही बिखरे सपनों को देख मन क्यों न द्रवित हो।
रोटी के जुगाड़ में कागज और स्याही भी जब रूठी हो,
जब दुनिया के अफ़साने लिखने की कीमत भी न मिले,
अपने ही बिखरे सपनों को देख मन क्यों न द्रवित हो।
समाज की धड़कन कलमकार की पूछ जब न होती हो,
सच को सच लिखने वालों की जब न कद्र होती हो,
जीवन के विद्यालय में जब अँधेरे में छुपना पड़ जाए,
भ्रष्टाचार से बिकती कलामों पर मन द्रवित क्यों न हो।
सच को सच लिखने वालों की जब न कद्र होती हो,
जीवन के विद्यालय में जब अँधेरे में छुपना पड़ जाए,
भ्रष्टाचार से बिकती कलामों पर मन द्रवित क्यों न हो।
कलमकार के शब्दों में जब इंसानियत ही मिटने लगे,
वेदनाओं को अब चाटुकारिता का आडम्बर प्यारा लगे।
वेदनाओं को अब चाटुकारिता का आडम्बर प्यारा लगे।
कलमकार के जीवन में रसखान बनना है आसान नहीं,
भरकर उदासी जेबों में लेखन करने में कोई शान नहीं,
सच की धारा में अपना अस्तित्व निखार लेना मुश्किल,
एवरेस्ट की चोटी चढ़ना जैसा भी दुष्कर है काम नही ।
भरकर उदासी जेबों में लेखन करने में कोई शान नहीं,
सच की धारा में अपना अस्तित्व निखार लेना मुश्किल,
एवरेस्ट की चोटी चढ़ना जैसा भी दुष्कर है काम नही ।
कलमकार को बदलते वक़्त के साथ कदम मिलाना होगा,
सत्य और निष्ठा के प्रति हर दायित्व को निबाहना होगा।
सत्य और निष्ठा के प्रति हर दायित्व को निबाहना होगा।
सामाजिक विसंगतियों से उसको समाज को बचाना होगा,
अपनी कलम की धार से सब कुरीतियाँ नष्ठ करना होगा।
अपनी कलम की धार से सब कुरीतियाँ नष्ठ करना होगा।