साहित्य सृजन
***********
एक ग्रंथ छुपा सभी के अंतस में ,
माँ शारदे की कृपा बरसने से ,
खुलता सृजन कपाट ..
जिससे निकालते असंख्य ....
कल्पना के पंछी जो ...
शब्दों की शक्ल में . .
अंकित होते कागजों में ....
पर ये मात्र पन्ने नहीं ......
होता सृजनकर्ता का कोमल हृदय ,
जो है सवेदनाओ का अनूठा संसार ,
पर शायद वह नहीं जानता कि ..
साहित्य सृजन नहीं सरल ,
जो आज हैं उनसे होता संघर्ष निरंतर ,
अपने अस्तित्व कि तलाश में ,
सहने पड़ते हैं असंख्य ...
वक़्त के थपेड़े ..
साहित्यकारों के व्यंगबाण...
बनते है जो अवरोध ,
एक चट्टान की भांती ,
उस नदी पर जो ...
मनमौजी है ,
सरल है ,
नहीं जानती कि..
साहित्य क़ी डगर है कठिन ,
सागर तक पहुंचने में
उसे पार करने हैं ,
छोटे से बड़े सभी ,
अडिग प्रहरियों को ,
जो समझते हैं ...
सीमा को अपनी धरोहर ,
भ्रम में जीते जो अक्सर कि..
उनसे अच्छा व सच्चा कोई नहीं है ,
नहीं समझते जो सृष्टि का नियम ...
जो कल थे वे आज नहीं हैं ,
जो आज हैं ,
उन्हे भी पीछे हटना होगा ...
वैसे ही जैसे ....
बागों में पड़े पीले पत्ते
और वृक्षों के नवीन हरे पत्ते ,
ही दे देते हैं उत्तम सीख !
__________________सुनीता शर्मा

Popular posts from this blog