दहेज और बेटियाँ
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बड़े अरमानो से उन्होने जिस बेटी को पाला था,
उसके मासूम माँगो ना कभी उन्होने टाला था ,
समाज धर्म निबाहने बेटी को वहाँ क्यों विदा किया ...
भूखी मकड़ियों का जिस घर में बड़ा जाला था !
नए माहौल में ढलने की दीक्षा का मानो असर था ,
बेटी ने हर कष्ट को छुपाकर सब बेअसर किया था ,
मायके की खुशी की खातिर क्यों उसने बलिदान दिया ...
भूखे भेड़ियों ने जब रोज उसका जीना दुश्वार किया था !
अपना हँसता खेलता परिवार उन्होने बर्बाद किया था ,
बेटी के दहेज की खातिर पिता ने घर को बेच दिया था ,
दर दर की ठोकर खाकर दामाद को चिराग क्यों समझा ....
जिसने खुद अपने जालिम हाथो से पत्नी को जला दिया था !
बेटी ना रही निर्मम समाज ने भी साथ छोड़ दिया था ,
राख में लिपटी थी बेटी जिसे लाल जोड़े में विदा किया था ,
अज़ब है दुनिया की रीत क्यों उन्होने भी उसे निबाहा था ...
अपने जिगर के टुकड़े को जब जानवरों के हवाले किया था !
आज दौर बदल गया पर बेटी आज भी बिकती है ,
क़म दहेज लाने पर लाश भी ना उसकी मिलती है ,
सुरक्षित नहीं बेटियाँ क्यों ना ये आग बुझ रही ...
कल ही क्या आज भी अधिकतर बेटियाँ सिसकती है !
बेटियों की हालत देख आज हर माँ पिता भयभीत हैं ,
दहेज लोभियों के बढ़ते परपंच देख बहुत व्यथित हैं ,
दहेज लोभी समाज को बहू क्यों बोझ लगे.....
अब बेटी के भविष्य पर हर घर आँगन चिंतित है !

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