कलयुग में कान्हा
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आज देखो हर ओर हर आँखे रो रही है ,
शायद कान्हा तेरी रूह सो रही है !

कैसा ये अनिश्चितता का दौर है ,
चारो ओर अराजकता का शोर है !

दुखी सुदामा हर गली में बिलखता है ,
कंश राज का अब बोलबाला दिखता है !

बहिने आज हर क्षण् अपमानित होती हैं ,
पर कान्हा तेरी उदारता ना कही दिखती है !

भ्रष्टाचार दीमक देश को चाट रही है ,
अत्याचार का दंश दिलो को पाट रहा है !

आज हर ओर माँ का बँटवारा हो रहा है ,
कान्हा तेरे संस्कार संसार भुला रहा है !

निरथक जात-पात का भेद बढ़ गया है ,
आज हैवानियत का क्रूर पद बढ़ रहा है !

पहाड़ो पर मेघो ने उजाड़ दिया जनजीवन है ,
आज सूना-सूना हर माँ का घर आँगन है !

वनप्रदेश और जनजीवन हर दम कराहता है,
तेरी मधुर बाँसुरी धुन को हर घर तरसता है !

आज भी यहाँ दुर्योधन जैसे सत्ताधारी हैं ,
पांडव देख आज भी दर दर भटकते हैं !

कलयुग में भी इंसानियत का मोल नहीं है ,
हर चौराहे पर मासूम लहू बेमोल बहता है !

गीता ज्ञान किताबो में सिमट गयी है ,
रिश्तों के आडंबरों में दुनिया खो गयी है !

आज फिर कान्हा तुझको आना ही है ,
आज फिर एक अर्जुन को जगाना ही है !

जन्माष्टमी के बहाने अब तुझे आना ही है ,
नए युग निर्माण के लिए फिर जन्म लेना ही है !
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आए सब मिलकर प्रार्थना करें कि अब समाज कल्याणकारी कार्यों की बढ़ोतरी हो ....शुभ जन्माष्टमी !

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