बचपन बीता कंचों संग 
खेले खूब मित्रों के संग 
छोटे बड़े का भेद भूल 
ढेर लगाते जीत सब रंग 

ये मारा अब मेरी बारी 
करले तू बचने की तैयारी 
अरे इनपर क्यूँ झपट रहा 
मैंने न छीनी तेरी पारी 

क्या अजब दिन थे 
वाह गज़ब ढंग थे 
दिन सारा खोने में 
होड़ लगते देख सब दंग थे 

निराले गोल मटोल लूटने बैठे 
भूख प्यास सब भूले बैठे
घेर बनाकर गौर से ताकते 
कहीं मुझसे ज्यादा न ऐंठ बैठे 

एक से एक भरते झोली में 
दुकानों पर गुहार लगाते मस्ती में 
सबसे बड़ा हो या छोटा 
होड़ लगाते बटोरने में 

आज बच्चों को देखोगे 
कंप्यूटर से कंचे कैसे खेलेंगे 
प्रतिस्पर्धा ,परस्परता छोड़ो 
ये भाईचारा कैसे सीखेंगे !

Popular posts from this blog