महिला दिवस

 समाज को महिला दिवस की दरकार नहीं

एक दिवस से उसको कोई सरोकार नहीं
सुनियोजित करो अब पुरुष दिवस
महिलाओं को यूँ बरगलाने की जरूरत नही

हर जगह हर दिवस सम्मान कब दोंगे
किसी एक दिवस को ही क्यूँ पूजोगे
कोख से लेकर मृत्यु तक बहिस्कार
ऐसा अनर्थ कब तुम सब छोड़ोगे

एक दिवसीय सम्मान नही माँग रही
युगों से समाज से प्रश्न पूछ रही
अधिकारों की बड़ी बड़ी बातें छोडो
अपने हालातों से जो खुद ही जूझ रही

महिलाएं भी अपने कर्तव्य समझें
हक पाने के लिए कदम बढ़ाएं
अपने वर्ग के दर्द को समझें
अपने प्रति हो रहे दुर्व्यवहार को समझें

नारी अराध्य भी तो पतिता भी
उद्धारक , सवेदनशील व् क्रूर भी
लडको को सिर पर बैठाना
अत्याचारों की गुहार क्यूँ फिर भी

नारी तुम शील ,शालीनता व् धैर्य की धवल किरण बनो
पुरुष तुम नशा , घृणा व् हिंसा को त्याग सुदर्शन चरित्र बनो

पुरुष व् महिलाएं ..सम्मान एक दूजे का करो
सुंदर सुदृढ़ समाज की परिकल्पना साकार करो

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