हम जीते रहे , तुम्हे  देखने के लिए ,
तुम तो दिखते  रहे सपने  की तरह 

हम परछाईयों  में जिसे तलाशते रहे ,
तुम मिले भी तो बेगानों की तरह 

हम महल सपनों का जिनके बनाते रहे 
तुम बसेरा  हमारा  तोड़ते रहे ,कायरों की तरह 

हम गीतों  में जिसे गुनगुनाते रहे ,
तुम सरगम भूल गए अंजानो की तरह ,

हम मुसाफिर बन भटकते रहे 
तुम तो निष्प्राण निकले मरु की तरह 

हम जिनसे मान की चाह  रखते रहे 
तुम  हमारा अभिमान लूटते  रहे दबंगों की तरह 

हम  भूख  मिटाने  के लिए भूख सहते रहे 
तुम निवाले छीनते  रहे गिद्धों की तरह 

हम मासूमियत से हक अपना माँगते  रहे 
तुम हमारे हक  लूटते रहे जालिमों की तरह 

हम ताउम्र जिसे सहारा समझते रहे 
तुम राहो में काँटे बिछाते रहे शिकारी की तरह 

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