भारत माँ
***********
भारत को हमने माँ की उपाधि दी ही क्यों ?
जब लूटनी ही थी उसकी अस्मत गली गली !
ममता की छावनी से भी नवाजा क्यों ?
जब उसके आँचल की लाज का मोह नही !
उसको बसनरहित करने दुर्योधन बन रहे हो क्यों ?
कबसे अपनी अमूल्य निधि को विदेशों में छुपा रहे हो !
आपसी रंजिसों से खून की होली तक क्यों ?
पडोसी मुल्कों को जैसे घात का मौका दे रहे हो !
नशे की ओर अपने नौजवानों को धकेलकर क्यों ?
अपनी अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रहे हो !
नशे के आगोश में बच्चे बन रहे दरिन्दे क्यों ?
अब हर माँ बहन बेटी को खून के आँसू रुला रहे हो !
डूब रही देश की कश्ती बदल रहा मौसमी मिजाज क्यों ?
आज घर घर में ' आतंक ' का क्रूर साया ले रहा जन्म !
घट रही मानवीय संवेदनाएं कीकड़ बन रही भावनाएं क्यों ?
महंगाई , भ्रस्टाचार ,दुराचार ,हिंसा अब बन गए माँ का श्रृंगार !
त्योहारों की गरिमा बन रही फूहड़ता का व्यापार क्यों ?
होली के हूदडंग में खुलकर होती अश्लीलता के हदे पार !
हर बात पर शाशन को अँधा बहरा घोषित करते हो क्यों ?
किसके निर्णय से कुर्सी का खेल निभता शायद अब भूल गए !
अब नारी को देवी नहीं भोग्य बना रहे हो क्यों ?
अब कहाँ देश को ' माँ ' कहने का अधिकार रहा !
कमजोर प्रजा को देख कर रहे विदेशी प्रहार क्यों ?
अब देश की दुर्दशा जग जाहिर जो हो गया !
अब देश में घर घर से बददुआएं निकलती है क्यों ?
संसार में क्या अब अपना वर्चस्व रहा !
आयें मनन करें कि माँ भारती का सम्मान क्यों ?
हमारे दिलों से दिनों दिन घट रहा !