भारत माँ

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भारत  को हमने माँ की उपाधि दी ही क्यों ?
जब लूटनी ही थी उसकी अस्मत गली गली !

ममता की छावनी  से भी नवाजा  क्यों ?
जब उसके आँचल  की लाज का मोह नही !

उसको बसनरहित  करने दुर्योधन  बन  रहे  हो  क्यों ?
कबसे अपनी अमूल्य  निधि को विदेशों में  छुपा  रहे हो !

आपसी रंजिसों  से खून की होली तक क्यों ?
पडोसी मुल्कों को जैसे घात का मौका दे रहे हो !

नशे की ओर  अपने नौजवानों  को धकेलकर क्यों ?
अपनी अर्थव्यवस्था  को कमजोर कर रहे हो !

नशे के आगोश में बच्चे बन रहे दरिन्दे क्यों ?
अब हर माँ बहन बेटी  को खून के आँसू  रुला रहे हो  !

डूब रही देश की कश्ती  बदल रहा मौसमी मिजाज क्यों ?
आज घर घर में ' आतंक '  का क्रूर साया  ले रहा जन्म !

घट रही मानवीय संवेदनाएं कीकड़ बन रही भावनाएं क्यों ?
महंगाई , भ्रस्टाचार  ,दुराचार ,हिंसा अब बन गए माँ का श्रृंगार !

त्योहारों की गरिमा बन रही फूहड़ता का व्यापार क्यों ?
होली के हूदडंग  में खुलकर होती अश्लीलता के हदे पार !

हर बात पर शाशन को अँधा बहरा  घोषित करते हो क्यों ?
किसके निर्णय से कुर्सी का खेल निभता शायद अब भूल गए !

अब नारी को देवी नहीं भोग्य बना रहे हो क्यों ?
अब कहाँ देश को ' माँ ' कहने का अधिकार रहा !

कमजोर प्रजा को देख कर  रहे विदेशी प्रहार क्यों ?
अब देश की  दुर्दशा  जग जाहिर जो हो गया !

अब देश में घर घर से बददुआएं  निकलती है क्यों ?
संसार में क्या अब अपना वर्चस्व  रहा !

आयें मनन करें कि माँ भारती  का सम्मान क्यों ?
हमारे दिलों से दिनों दिन घट  रहा !

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