यूँ बने हम भी मूर्ख  


वक़्त का परिंदा  कबका उड़ गया किन्तु आज भी मीठी यादे  मन को गुदगुदा जाती है ! बात उस समय की है जब हमारी स्नातकोतर  की परीक्षाएं होने वाली थी ! मैं किसी कारणवश  अपने गाँव चली गयी थी जब  वापिस आई तो परीक्षा में एक दिन शेष था ! परीक्षा सारिणी  घर पर आ चुकी थी तो देखा हमारी परीक्षा 30 मार्च  से आरम्भ  थी , पहली तारीख को कोई परीक्षा न होने के कारण  मैंने अपनी सखी रजनी  संग ,  कॉलेज के सहपाठियों को  बेवकूफ बनाने की योजना बना ली  ! फिर क्या था 29 मार्च को  रजनी और मैंने  साथ मिलकर सभी के लिए कुछ न कुछ सोच कर खूब खुश हो रहे थे ! उसके बाद हमने अपनी प्रथम परचा 30 को देकर  2 तारीख के पर्चे की तैयारी  कर ली थी !31 तारीख साय को हमारे एक सहपाठी  हर्ष  का पेजर  पर मैसेज  आया कि  कल  मेडिसिन की थीसिस जमा करने हैं ,समय 10 बजे ! बस सारी  योजना की मस्ती काफूर हो गयी और रात को 2 बजे तक मौखिक की  तैयारी  करके  मैं और रजनी निश्चित समय पर विश्वविद्यालय  पहुँच गए ! हमारे डिपार्टमेंट में न तो कोई विद्यार्थी  और न कोई शिक्षक दिखा  तो हम सीधे सूचना कक्ष में पहुंचे तो हमारी सारे  सहपाठी जोर से खिलखिलाए और हम दोनों को अप्रैल फूल बना दिया ! दूसरों  को हमेशा इस दिवस में बेवकूफ बनाने वाले  उस दिन  हम  खुद  हास्य का केंद्र बन गए थे !  हम भी साथ में खूब खुश थे  क्यूंकि उस दिन हम सबने  एक दूसरे से यह वादा भी किया था कि जीवन में  जितना हो सके लोगों के जीवन में खुशियाँ लाने की चेष्ठा करेंगे !

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