आत्म मंथन 

दिलों में  बुझ रहे मानवता के दीप  है,
 हर  सडक  पर  खून की बरसात है ,
आगे बढकर  कोई  मदद  क्यूँ करे, 
कुशाशन  से मिलता  क्रूर  प्रहार है !

इंसानी  विभिस्ता  में  गमगीनियों  सा माहौल है !
नैतिकता  अधमरी  ,चीत्कारों  से  अंतर्मन  काँपा  है !

दहसत  फ़ैलाने  वालो  से न डर  ,हौसला रख !
मंजिल अब दूर नहीं , साँसों  के आवेग को परख !!

जीवन की  तन्हाईयों में खुद की तलाश कर ,
परायी पीड में अपना जीवन निसार कर ,
वक्त के थपेड़ों की उथल पुथल ,
सब्र का मोल समझ जीवन उन्नत कर !!

बेसहारों  का तुझे  अडिग  संबल  बनना होगा !
पतझड़  झेलते बुजर्गों  का आत्मबल  बनना होगा !!

समाजसेवा  देता आत्मसंतोष  ,मन से हटाता आक्रोश !
आत्म मंथन   अमृत समान  , जीवन में लाये नया जोश !
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सभी आदरणीय सदस्यों को सादर नमस्कार !

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