मन

मन की माया  अपरम्पार  ,
मोह माया में ढूंढें श्रृंगार ,
विधुत गति से भी भागे तेज़ ,
जाने किसके हाथ इसकी डोर !

स्वप्नों की अद्भुत नगरी में ,
संघर्षों के भयावह  धरातल में ,
चंचल मृग  सा भागता रहता ,
खूब भटकता अपनी धुन में !

मचलता कभी कटी पतंग सा ,
डगमगाता बिन मांझी  के  नाव सा ,
जीवन भर न थमता क्षण भर ,
है इसके खेल समुंद्र  सा !

इसको जीतने का जतन भारी ,
लगी इसी जुगत में दुनिया  सारी  ,
इसकी ,क्षमता के आगे सब हारे ,
क्या हो बड़े  बुद्धिजीवी  या हो पुजारी !

मन साधो , न बनाओ इसे मदमस्त हाथी ,
मन बनाओ  सकरात्मक  न बनने दो इसे उत्पाती ,
निग्रहित  मन  में होती   शक्ति  प्रचण्ड ,
ईश्वरीय  भक्ति से  ही  इसे मिलती  शान्ति !

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