रिश्तों  का  दर्पण 

आत्मा के भीतर तक संवेदनाओं का  धरातल पैदा करता है ' रिश्ता '! रिश्तों का अमरत्व  त्याग , स्नेह व भावना दर्पण  में निहित होता है ! यह  वह  अहसास होते हैं जिनके विभिन्न आयाम होते हैं ! इंसान सामाजिक प्राणी है  और संसार में जीवन यापन करने के लिए रिश्ते उसे आत्मबल देते हैं ! उसके जीवन में प्रत्येक रिश्ते की अनमोल पहचान होती है !

जिन्दगी के प्रारंभिक कड़ी  में माँ बाप के परिवार से प्राप्त रिश्ते उसके लिए अनमोल होते हैं फिर जब वह प्रथम बार घर से बाहर निकलता है तो पारिवारिक परिवेश से बाहर निकलता है!  पारिवारिक  परिवेश से बाहर उसे मित्रों का वह अनूठा संसार मिलता है जिसमें वह बहुत  आनंद ,स्नेह और अटूट विश्वास के बंधन में बंध जाता है ! उसके बाद जीवनसाथी और उससे जुड़े नवीन रिश्तों के अनुपम संसार में वह सुख दुःख  में अपने आस पास रिश्तों का सुंदर संसार देखता है !

रिश्तों की बागडोर तभी मजबूत बनती है जब उसमे श्रधा  ,अटूट प्यार और विश्वास हो ! रिश्ते अपने आलोकिक चमक  तभी प्राप्त करता है जब उसे संजोना और निभाना  आये ! एक दूसरे   के मान स्वाभिमान का ध्यान रखा जाये ! किन्तु सम्बन्धों की प्रगाढ़ता दोनों तरफ निबाही   जानी   चाहिए ! जिन्दगी में वसंत की भांति होते हैं रिश्ते ,इनमें जरा सा भी दरार  या खटास आ जाये तो रिश्तों की कड़वाहट जीवन में पतझड़ के समान बन जाती है ! यदि रिश्तों में संदेह या द्वेष आ जाए तो इसके परिणाम त्रासदी के मार्गी  बन जाते हैं ! जिस प्रकार मीठी वस्तुओं पर चींटियों का आक्रमण होता है इसी प्रकार इर्ष्या , संदेह , द्वेष , कट्टु बोल  रिश्तों में दीमक समान है , जो सम्बन्धों को शनै:  शनै:  खोखला करती जाती है !

यदि आप अपने इर्द गिर्द रिश्तों की सुंदर वाटिका चाहते हैं तो एक कुशल  माली की भाँती उनका ख्याल भी रखना होगा ! खून के रिश्तों  में गरिमा तो होती है किन्तु सामाजिक दायरों में सिमटे मानवीय रिश्ते भी वही देख रेख और अपनत्व चाहते हैं ! जिस रिश्ते की नीव कमजोर हो और आपसी आत्मीयता का आभाव हो तो उस रिश्ते की गरिमा की उम्र छोटी होती है ! यदि अपने अहं को बनाये रखने के लिए यदि एक दूसरे के मन को आहत करेंगे तो समय के साथ उसका भावनात्मक आधार की चरमरा जायेगा 

जीवन  के हर मोड़ पर हमे अपने परिजन , परिचित और अजनबी लोग मिलते जो भावनात्मक कड़ी से हमारे रिश्तों रुपी माला में मनकों की भाँती सम्मिलित होते चले जाते हैं ! कुछ रिश्ते जीवनपर्यन्त  साथ रहते हैं तो कुछ अपनी  खट्टी  ,मीठी  और कसैली यादों की दास्ताँ पीछे छोड़ जाते हैं ! रिश्तों की डोर बड़ी कमजोर होती है , इसे मजबूती हमारी आपसी संवेदनाएं देती है ! एक दूसरे की प्रेरणा बनना चाहिए और एक दूसरे के आत्मसम्मान पर विशेष ध्यान देना चाहिए !

रिश्तों  की नीव बरकरार रखने के लिए आत्मीयता ,एक दूसरे  के दुःख कम करने के भाव , विश्वाश और आकर्षण  नितांत आवश्यक निधि है ! इन गुणों को दोनों पक्षों द्वारा निभाया  जाना अनिवार्य  होता है ! रिश्तों की पकड़ मजबूत बने रखने के लिए आपसी स्नेह मौलिक है ! उपहास करना और मजाक करना ...दोनों की परिधि स्पष्ट रखनी चाहिए  नही तो वहां कड़वाहट  भर जाएगी ! हमे तो समाज में रिश्तों के  कुशल शिल्पकार की भूमिका में खरा साबित होना होगा तभी हमारी कला की इस संसार में प्रशंसा होगी !रिश्तों में पात्रता और पवित्रता मौलिक हैं !

मित्रता के  रिश्ते में विश्वास  अहम होता है ! अपने अहं या स्वयं को ऊँचा साबित करने के लिए अपने मित्रों के जज्बात के साथ खिलवाड़ से आपको सकून तो मिल जायेगा किन्तु उस उपहास से आहत मन प्रतिशोध की चाह जीवन तक बर्बाद कर सकता है ! हर रिश्ते में मर्यादा का आचरण मान्य है ! रिश्तों को निभाने में वाणी अहं कड़ी है जो संबंधों में मधुरता या विकृता का मापदंड तय करता है ! प्रत्येक व्यक्ति  के मानसिक ,सामाजिक और पारिवारिक आवश्यकता भिन्न होती है ! ऐसे में एक दूसरे के साथ भावनात्मक  संबंध रखने पर ही रिश्ते सफल होते हैं ! जीवन में अक्सर ऐसा भी होता है की खून के रिश्ते आँसू देते हैं  किन्तु परायों से प्राप्त आत्मीयता व्यक्ति विशेष की जीवन दशा व् दिशा बदल देती है ! पुरानी कहावत  यहाँ फीकी पड़ जाती है कि इस जहाँ में केवल खून के रिश्ते महत्वपूर्ण होते हैं !

  आधुनिकता का आवरण अब रिश्तों पर दिखने लगा है ! आज की आधुनिकता की दौड़ में रिश्तों को स्वार्थ और आत्मीयता के आभाव ने पूरी हिला कर रख दिया है ! खून के रिश्ते हो या आपसी विश्वास के रिश्ते ...सभी पर इर्ष्या और द्वेष का रंग घुलने लगा है     आज के परिवेश में एक दूसरे से प्रतिशोध , गिरता आत्मविश्वास , झूठा दंभ , आत्म केन्द्रित जीवनशैली  और संबंधों का व्यवसायीकर्ण  दिखने में आ रहा है जिसका मुख्य कारण धर्म के प्रति अरुचि जो अशांति और अवसादों जैसे मनोवेगों को बढ़ावा दे रहा है !

हम सभी को ध्यान रखना होगा हर रिश्ते के लिए अहं  वह जहर जो तब तक डसती रहेगी जब तक आपसी सम्बन्ध विच्छेद न हो जाये !आपसी सामजस्य  और आत्मीयता  रिश्तों के लिए अमूल्य धरोहर है !  बस एक कथनी  जो किसी शायर कि जुबानी है सदैव याद रखनी होगी --"   जिंदगी की किताब के कुछ पन्ने होते है! कुछ अपने और कुछ बेगाने होते हैं! प्यार से संवर जाती है जिंदगी! बस प्यार से रिश्ते निभाने होते है !"   

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