भावना

भावना का मोल न समझे कोई ,
इसके भाव होते सदा अनमोल ,
जीवन की कठपुतली नही है ,
यह तो जीवन की मार्गदर्शी है ,
भावना कोई खिलवाड़ की वस्तु नहीं ,
इसे मसलकर खो रहा मनुजता मनुष्य ,
अपने निज स्वार्थ हेतु इस्तेमाल न कर ,
भावना तो है दैवीय व् ईश्वरीय केंद्र ,
यह भोले का स्वरुप भी है ,
तो यह अग्नि सा प्रचंड भी है ,
लोग सितमगर हैं ज़माने में ,
मासूम समझ , रौद्कर खूब इतराते हैं ,
भावना न मांगे पाबंदी
न पसंद उसे तिरस्कार ,
भावना तो है स्वछन्द पंछी,
हर डेरे पर उसका बसेरा ,
भावना से आती भावुकता ,
आत्मीयता और सहानुभूति ,
इसके मार्ग के अवरोधक बनते
क्रूर ,हिंसक और स्वार्थी ,
भावना हर व्यक्ति की समान,
इसका कभी अपमान न करना !! ३/८ /१२

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