मैं कौन हूँ ?

मैं कौन हूँ ?
क्या अस्तित्व मेरा ?
किस मंजिल की ओर पदापर्ण  किया मैंने ?
क्या किसी की करुणा पायी मैंने ?
अंतर्मन की शुभ्रा  को क्या पूज पाई मैं ?
अपने अस्तित्व पर स्वयम प्रश्न चिन्ह  लगा रही मैं !

मेरे अंतर्मन की पुकार न सुनता कोई ,
तेरे  हृदय की चीत्कार न सुनता कोई ,
प्रतिभा के समुंद्र  साक्षरों की पुकार न सुने कोई ,
असहाय जीवन की विडम्बनाओ को न समझे कोई ,
अंतर्मन को आलोकित करने का प्रयास न करता कोई !

हाँ , उठ , तुझे स्वयं बदलना होगा ,
वक्त के उफनते थपेड़ों को सहना होगा ,
मुरादों के झंझावतों को तोडना होगा ,
सैकड़ों नागफनियों को उगाना होगा ,
पूर्णता के आवरण को छोड़ना होगा ,
संभावनाओं की आहट पहचानना होगा !
मैं कौन हूँ ? 
कलुषित समाज की प्रताड़ित नारी ,अस्तित्व की संभावना तलाशती नारी !

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