बादल
`बादल हैं आँसू धरती माँ के आँखों के,
कुछ पलों में ही देती सबक इंसान को ,
गर्मियों में निरंतर बाट जोहते जिन बादलों की ,
वही बनती विपदा जब फटता बादल इंसान पर ,
चारों तरफ हैं पानी पानी फिर भी बेहाल इंसान ,
घर बह गए ,जीवन मिट गये ,त्रासदी का माहौल ,
बादल हैं आँसू प्रकृति के ,ले रही प्रतिशोध खिलवाड़ की !