यादें

तुझसे बिछड़कर
फिर वही रात दिन ,
छिन गया ......
तू  था मेरे दिल का सकून 
हर बढ़ते तूफ़ान की न कोई मंजिल ,
जिसका घर था
केवल हमारा दिल ,
वक्त के हाथों कितने मजबूर ,
आईने में ढूंढे तेरी तस्वीर ,
चुभता हर पल .....
वह श्याह सवेरा ,
तेरा रूठ कर चले जाना ...
खत्म न हुयी कभी बरसात
हर खुशियों में
गमगीन शहर ,
सपनो में केवल तेरा बसेरा ,
क्यों मेरी चाहत बना खुदा की चाहत ,
मुझे रुलाकर मिली उसे जो राहत ,
अपनों की तकदीर ,
अपनों की हालत ,
कोई रूह को न दे सकूँ ,
देता बस जैसे खैरात ,
जितने भी मिले ,
दिए सभी ने गम की बरसात ,
जीवन के आखिरी पड़ाव में भी ,,,
तेरा गम सताता ,
दुनियावी भीड़ में भी
कोई एक पल न देता राहत ,
बुझे अरमान ,
सिसकता दिल ,
भावनाओं को कोई न आंकता ,
उफ़ ..... यह जिन्दगी
तन्हाईयों में जीना
कोई समझ नही सकता ,
खता खुदा की समझें
अपनी तकदीर की तदबीर
दुनियावी रिश्तों से ...
न कोई सरोकार जब
तुमने छोड़ दिया साथ ,
कितने ही वसंत आए पर
तुझ बिन ............
सब पतझड़ सा लगता ,
एक कसक सी रह गयी .....
जीवन में ,,,
न तेरी इसमें कोई खता,
आँखों के ख्वाब और
दुनिया के धोखे में
रास न आता कोई वसंत !!

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