इंसानियत पर सवाल 

अनेक रूप बदलकर तुम क्या परख रहे हो ?
क्या चरित्र  के बुनकर बन इतरा रहे हो  ,
सत्यांकन  हो जिस उर में उसका पारखी है पारस !

समुंद्र में उफान दिखाकर तुम क्या परख  रहे  हो ?
क्या अपनी  तीव्र लहरों की संरचना से डरा रहे हो  ,
उसके  विराट हृदय में लहरों का स्नेह है बसता !

 अग्नि ज्वाला बन तुम  क्या परख  रहे हो  ?
क्या अपनी उष्णता  का दम्भ भर रहे हो,
अग्नि पावक भी तो है वो यज्ञ  की  शान !

कंटक  बन तुम क्या परख रहे हो ?
क्या अपने प्रहार से लहू की धार देख रहे हो ,
कंटक शूल भी तो है जीवन संघर्ष का  पथ प्रेरक !

मेघ बनकर तुम क्या परख रहे हो ?
क्या अपनी गर्जन का प्रभाव दिखा रहे हो ,
मेघ विपदा भी हैं तो धरा की भी है अमृतधारा !

मृदा  बनकर तुम क्या परख रहे हो ?
क्या अपनी  माँ के  गर्भ  का शोषण देख रहे हो ,
मृदा कब्र भी है तो है वो जीवनदायिनी !

पवन बन तुम क्या परख रहे हो ?
क्या अपने वेग से सृष्टी को आतंकित कर रहे हो ,
पवन आपदा भी तो है वह भी जीवन तरंग !

काष्ठ  बनकर तुम क्या परख  रहे  हो ?
क्या  अपने  बल से डरा  रहे हो ,
काष्ठ  मारक  भी है वो भी  तारक !
१९/ १०/२०१२ 

Popular posts from this blog