नवरात्रों के पावन सुअवसर पर दुर्गे माँ को समर्पित मेरी रचना .
जय जय माँ दुर्गे
मरणोंमुख जग को आश्वासित निस दिन करती तू हे दुर्गे माँ ,
व्यथित अंतर्मन को ज्योतिर्मय बनाती तेरी विराट छवि हे दुर्गे माँ ,
तेरी आभा मंडल में सुशोभित तेरे नौ स्वरुप हे दुर्गे माँ ,
इस सुप्तयुग को विश्व शान्ति की नव चेतना की प्रेरणा से भर दो हे दुर्गे माँ ,
अमानवता के मरण आचरण को मानवता के शुभ्र आचरण से भर दो हे दुर्गे माँ ,
वाणी बने प्रखर और ममता का हो अलंकर्ण तेरी महिमा में हे दुर्गे माँ ,
अहंकार और द्वेष से बंटते अपने बच्चों की रक्षा करना हे दुर्गे माँ ,
स्पन्दित कर दे आज तू हर श्रापित कण-कण को हे दुर्गे माँ ,
इस धरा की नियंता व् अभियंता तू ही तू हे दुर्गे माँ ,
तेरी इच्छा की प्रतिध्वनि से स्पंधित होता ये जीवन हे दुर्गे माँ ,
बिना सुकृत्य करे फलांक्षा बसती सबके हृदय में हे सर्वज्ञानी दुर्गे माँ ,
विषादित जीवन में भर दे गंगा सा त्याग और धैर्य हर ह्रदय में हे दुर्गे माँ ,
तेरी तटस्था और संवेदनशीलता बनाती मनुष्य को स्थितप्रज्ञे हे दुर्गे माँ ,
तेरी हम निस दिन करें तेरी ही वंदना हे विश्व कल्याणी हे दुर्गे माँ !!
१८/१०/२०१२
१८/१०/२०१२