क्यूँ न करती वजूद की तलाश
क्यूँ इन आँखों में गम के आंसू आये हैं ,
क्यूँ बिखर गए सपने और सपने पथराये हैं ,
क्यूँ तेरे मन की कोमलता बन गयी पाषाण ,
क्यूँ तेरे शब्द ह्रदय भेदन कर रहे बन कृपाण ,
क्यूँ दर्द में डूबे रहना बन गया बंधन ,
क्यूँ विरह वेदना में मिटे अमूल्य जीवन ,
क्यूँ कलंकित शब्दों को तुम अपना ढाल बनाते .
क्यूँ बेगैरत लोगों की खातिर अपना सकूं जलाते ,
क्यूँ गुमनाम अंधेरों में हो खुशियाँ तलाशते ,
क्यूँ स्वयं को गरीब समझकर सदैव खुद को धिक्कारते ,
क्यूँ ईमान ,प्यार ,वफ़ा के पीछे दीवानगी ,
क्यूँ तन्हाईयों में रहकर आसहीन जीवन जीना ,
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क्यूँ जात पात पर हर पल उलझो तुम
क्यूँ जीवन को त्रिश्नाओं से सरोबर करते तुम ,
क्यूँ न विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ते तुम ,
क्यूँ लड़ाई झगड़ों में उलझ कर अमूल्य पल खोते तुम !