हमारे बुजुर्ग 

जीवन के कर्तव्य पथ को खूब निभाते माँ पिता ,
माँ होती अगर  धरती तो है जग में  विराट आसमां पिता,
माँ निस दिन अपना सुख  चैन खोकर बच्चों को सुख  देती ,
पिता अपने खून पसीने से बच्चो की अभिलाषाएं पूरा करते, 
शैशवस्था से यौवन  तक उनका जीवन त्याग में बीतता !  

पंख निकलते  बच्चे अपना खुद का आशियाँ बना लेते, 
जीवनभर  जिस आस से उन्हें प्रवीण बनाया ,
आज वही माँ बाप बच्चो को खुद पर भारी पड़ते ,
माँ यदि अपंग नही तो बनती तुम्हारी नौकरानी ,
पिता यदि पेन्सन रहित तो बनते केवल ताड़न के अधिकारी !

जिन माँ पिता की ऊँगली  पकड चलना ,बोलना और कमाना सीखा, 
उनके बुढ़ापे में तुम नही वही  कार्य करते व् अपना फ़र्ज़ निभाते, 
जीवन भर तुम्हारी ख़ुशी की खातिर जिन्होंने नींद भूख त्यागी, 
आज उन्ही से तुम दो रोटी और चंद प्यार के बोल ठुकराते ,
जब उन्हें तुम्हारा सहारा चाहिए तब उनके अकेला छोड़ दूर कहीं नीड़ बसाते !
 
वक़्त के आखिरी पड़ाव में कितने मजबूर से वे लगते ,
जिन सपनो की खातिर उन्होंने अपना सुख चैन न देखा ,
उन्ही सपनो को तोड़ बच्चे उन्हें कितनी पीड़ा देते ,
बच्चों ने तो इस आधुनिकता की दौड़ में भुला दिए संस्कार सभी, 
अपने माँ पिता की लाचारी देख भी उन्हें न पीड़ा होती कभी ! 

जिन माँ पिता ने बच्चों को वसीयत में कुछ न दिया, 
बच्चों ने उन्हें काल कोठरी या फिर मृत्यु दंड दिया ,
इन बुजुर्गों का जिस्म से रूह  तक वेदना में गुजरती ,
साथ न हो यदि बुजुर्ग दंपत्ति  तो घर समाज पर बोझ कहलाते ,
आज के बच्चे कल बुजुर्ग कहलायेंगे  ये इन्हें कौन समझाएगा !

जैसा करोगे वैसा भरोगे ,ये वक़्त तो नियति ही बतलाएगी ,
अपना समय न दे सको तो अपने बच्चों के साथ तो रहने दो ,
क्यों यह डर तुम्हे सताता की ये तुम्हारे बच्चों का अहित सोचते, 
अरे खुदगर्जों तुम क्या यूहि संसार में बड़े हुए ,
तुमको दुनियादारी सिखाने वाले क्या तुम्हारी संतान को न चाहेंगे !

लोग वर्ष में अंतरास्ट्रीय वरिष्ठ  दिवस मानते ,
धिक्कार है हमारी सोच को की हम केवल बाहय दिखावा करते, 
हो मन में जरा सा भी आत्मसम्मान कहीं ,
घर के बुजुर्गों को दो सम्मान ,न करें वर्ष का इन्तजार, 
बुजुर्ग घर का नीव होता ,होता समाज की संजीवनी !

अपनों को अपनाकर देखो सारी धरती तुम्हारी ,
धन्य हैं वे घर जहाँ पर बुजुर्ग की दिखती खुशहाली, 
जिस घर में होती बड़े बुजुर्ग की निस दिन सेवा ,
और गूंजती रहती जिसमें हरपाल बड़ों की अमृतवाणी ,
उस घर में हर दिन होती खुशहाली और हर दिन दिवाली !!१/१०/१२ 

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