स्याह बचपन
संघर्षों में गुजर रहा है स्याह सा बचपन ,
दिन भर की कड़ी मेहनत में ढूंढता अपनापन ,
घर का कर्ज मिटाने फर्ज़ बन आया दूसरे आँगन ,
पालनहार की तिजोरी भरने हेतु पिटता हर क्षण ,
झूठन भर मिले न मिले नही जाने इसका मन ,
सख्त जीवन को झेल रहा जिसका तन ,
लताड़ व् मार में गुजर जाता जिसका सारा दिन ,
कूड़े की ढेर मैं बैठा सिसक रहा देखो स्याह बचपन !