रेत के कण 

रेत  के  कणों  में छिपा जीवन का सार ,
पल पल जीवन  के घटते  दिनों का आधार!

भोर की बेला में स्वर्णिम इसकी किरण ,
जैसे फैलती शिशु के मुख का  भोली सी मुस्कान !

सुबह -सुबह नदी तीरे पंछियों का रेत पर देख कलरव ,
याद आते हैं बचपन के वे  खिलखिलाते पल !

सूर्य की गर्मी से तपते इसके अंश ,
जैसे जीवन में युवावस्था की बढती उमंग !

दिन में इन्ही रेत के कणों  का तपकर सुर्ख होना ,
प्रोढ़ावस्था में ज्ञान के सरोवर में  सबका जीवन !

चाँदनी की ठंडक से मिलती इनमे शीतलता ,
जैसे जीवन की सांझ में बढ़ते बचपन को छूने  का  सकून !

मुट्ठी  खुलने पर हाथो से इनका खिसकना ,
यूँ ही होता जीवन का मृत्यु से सामना !

बहुत समय से अजमा रही जैसे प्रकृति ,
रेत से अडिग धूप - छाँव  की आसक्ति !

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