देखो धरा  रो रही है ...


देखो धरा रो रही है .......चारो ओर फैलता देख वैर -वैमनस्य ,नैतिकता रौंदी जा रही अनैतिकता के हाथों

देखो धरा रो रही है .......अवचेतन होती मूल्य धारा से ,ममता छिन रही बर्बता के हाथों !

देखो धरा रो रही है .......मूर्छित हो रही वज्र कठोर धर्मनीति अब ,कुलाचे मार रहे आतंकी निर्ममता के हाथों ,

देखो धरा रो रही है .......हिंसक बनती उसकी रचना ,निष्क्रिय होता मानव आत्मबल शोषण के हाथों !

देखो धरा रो रही है .......जाती पाती की विभस्तथा बढ़ रही ,बन रही महाकाल रंजिशों के हाथों !

देखो धरा रो रही है .......कास्तकारों के उजड़े बंजर भूमि ,बन रही बली बिजली कटौती के हाथों !

देखो धरा रो रही है .......धर्म क्षेत्रवाद से बंट रहा रास्ट्र ,स्वर्ग सी इस धरा को रौंद रहे आन्दोलनों के हाथो !

देखो धरा रो रही है .......मोह ,माया ,मृगतृष्णा से शुब्ध सब जन ,कुचल रही मानवता बढती महंगाई के हाथों !

देखो धरा रो रही है .......बिसर चुके हैं परतंत्र की बेडी,स्वतंत्रता खो रहे हैं ,विदेशी पूंजीपत्ति के हाथों !

देखो धरा रो रही है .......देखो धरा रो रही है ......

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