जीवनदर्शन
ईश्वर को अलभ्य जान ,जीवन को यूँ नष्ट न करो ,
जीवन चक्र के अनमोल पल ,परहित में न्योछावर करो !
वाणी मिसरी सी हो ,कर्म चींटियों सा तुम निसदिन करो ,
इस परिवर्तनशील जगत में न किसी के संग दुर्व्यवहार करो !
स्पर्श ईश्वर का करना हो तो सम्पूर्ण उसका ध्यान करो ,
मृदुल भाव से शीश झुककर ,इस जग में ऊँचा नाम करो !
प्रतिदिन की भागदौड़ में एक प्रहर उसको तुम याद करो ,
अपने भोजन की एक थाली ,दूसरों के हित में त्याग करो !
अपने ज्ञान के दीपक से दूसरों का जीवन तुम रोशन करो ,
व्यसनियों का बहिष्कार न कर उनका जीवन उन्नत करो !
असाध्य रोगों से लड़ रहे जीवन की तुम भरपूर सेवा करो ,
अपने आत्मिक उथान की धारा निसदिन तुम प्रबल करो !