अपमान
इस युग में नारी झेल रही अपमान हर कहीं ,
घर आँगन सरे बाजार नीलाम हो रही ,
कलयुगी संबंधों की मार पड़ी सभी रिश्तों पर
नारी आँसू को देख निर्लज संसार खूब हँस रहा ,
संसार में नारी देखती पुरुषों में प्रेम सरिता
पिता ,पति ,पुत्र ,भाई व् मित्र की तस्वीर में ,
किन्तु कलयुगी पुरुष की बढती विसंगति में
हर रिश्ते उसे बस आँसू समन्दर भर देते रहे ,
पिता समझता उसे बोझ अपनी कमाई पर ,
पति की वह तो जीवन कठपुतली सी ,
पुत्र उसे समझता बोझ जीवन भर का ,
भाई हर पल करता खिलवाड़ उसकी भावनाओं का ,
मित्रता की चाह में वह जिस ओर बढ़ी ,
पुरुष मानसिकता के व्यभ्याचारी मिले ,
हर क्षेत्र में ,हर डगर में मिला उसे
बस अपमान व् अन्याय का उपहार ,
इस धरा पर नारी न जाने कबसे ...
हो रही कलंकित अपनों के हाथों ,
कहीं आत्महत्या तो कहीं ख़ामोशी
को लगा गले जूझ रही समाज को
हर देश प्रदेश मे पी अपमान का घूँट को
उम्मीद की डगर पर चल भूल रही अपमान को !
हर देश प्रदेश मे पी अपमान का घूँट को
उम्मीद की डगर पर चल भूल रही अपमान को !