जिन्दगानियां 

यह जिन्दगी यूही बिखर न जाये कभी ,
जिंदगानी के सफ़र में वह खो न जाये कहीं,
रौनके भरी महफिलों में भी घिरी तन्हाई थी 
फिर वही सूनापन ,वीरानी घिर आई थी 
उससे रूठने मनाने में तिरस्कृत हैरानी सी 
सूखे पर्वतों से शुष्क जीवन में
बह रही उसकी अविरल स्नेह धारा
बादलों की घुमड़ बना बीते जीवन
चाँद की चमक में सूरज की तपिस
त्याग व् स्नेह धारा में पनपती रंजिश


देह के नश्वर सौन्दर्य के छलावे में
कांटो का फूलों से यूँ मुस्कुराने में
हर पत्थर के आँसुवों के भीगे जाने से
भीतर की ज्वाला की तपिश में
बाहरी द्वेष के फैले अंधकार में
यूही भटक रही हैं जिन्दगानियां !!

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