मौत 

शब्दों के भयावह झंझावत खामोश हो चले ,
मन की त्रिश्नाओं में वीरान मौन सिमट गयी ,
मुस्कुराती फूलों पर घोर विभस्ता छाई ,
जीवन ज्योति को तिमिर सिन्धु में डुबो गयी,
रूह चीत्कार उठी तेरे आने पर ए मौत !

चेहरों पर विभस्त विकराल दानवी चेहरे लिए ,
घर -घर ,नगर -नगर तेरे स्वरांजलि बने हुए ,
दहेज़ -वेदी से उत्पीडन ज्वाला लिए हुए ,
फूलों की सेज से सती कुण्ड तक बिखरी हुए ,
क्यों लील जाती जीवन ए मौत तू ख़ामोशी लिए हुए !

तुझे बनाने वाला स्वयं आशुतोष कहलाता ,
फिर तू क्यों इतना विष भीतर छिपाए मासूमो को लीलता ,
क्यों अनगिनत मासूमो के हृदय को तू दुःख रंजित करता ,
क्यों इन दहेजी दानवों के जीवन तू बकसता,
क्यों न तू इन दहेज़ पिपासु गिद्धों के चीथ्रे उडाता 

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