श्री साईं मेरे ....

तुम क्या हो , बहारों से पूछो ,
तुम कहाँ हो निगाहों से पूछो !

तुम्हारे आने की उम्मीद लिए ,
गमो के प्याले पिए जा रहे हैं !

कुछ चंद सांसो की डोर बची है ,
कुछ पल और जीने की आस लगी है !

ये दर्दे दिल कब तक सहेंगे हम ,
क्यों रिश्तों के बोझ सहें अब !

कभी तेरा चितवन में समाना ,
कभी तेरा तन्हाइयों मैं डुबोना !

आज ये रंगहीन जीवन के पन्ने ,
खास लगते उदासीन सपने !

काश यह मन भी अपाहिज होता ,
संकुचित दिल में ख्वायिशें न पालता !

और कोई क्यों इस धारा को समझे ,
और कोई क्यों इस पथरीले बाट पर चले !

मैं मूक शब्दहीन ,आशाविहीन प्राणी ,
तू शब्द्वाहक , निष्ठावान प्रतिबिम्ब साईं !

जब से आये जीवन मैं साईं तुम
तब से ममतामयी हृदय की तस्वीर बने तुम !

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