पशु बलि 

पशु बलि ऐसी ही एक अंधविश्वास भरी परम्परा है जिसमें किसी भी पशु चाहे वह गाय,भैंस या बकरी हो।इस उम्मीद से बलि दे दी जाती है कि उस पशु को देवता पर अर्पित करने से वह देवता प्रसन्न हो जावेंगे तथा बलि चढ़ाने वाले की सारी इच्छाएं पूरी हो जावेगी।अपनी मृगतृष्णा की पूर्ति के लिए दूसरे जीव का जीवन हरण करने की यह प्रथा भी कितनी विचित्र है।अपने लाभ के लिए किसी दूसरे की जान लेकर उसके खून की धारा बहाकर,उसके मांस के टुकड़ों को उदरस्थ कर क्या कोई धार्मिक क्रिया पूरी हो सकती है या किसी ईश्वर को प्रसन्न किया जा सकता है !
अपने अंग पर लगा हल्का सा घाव हमे अत्यंत पीड़ा देता है किन्तु दूसरा जीव हमारे लिए मात्र खिलौना जिसे हम अपने धार्मिक या मानसिक संतुस्ठी हेतु बलि देने की परंपरा को अनंतकाल से निभाते जा रहे हैं ,अपनी जिह्वा की लोलुपता मिटाने या पूर्वजों के बोझ को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढाने के बजाय हम प्रत्येक जीव को समभाव देखकर पूजा के अन्य मार्ग को अपनाये जैसे की कई प्रान्तों में बलि हेतु नारियल ,उड़द दाल ,कटहल या कद्दू का इस्तेमाल कर फिर उसका प्रसाद वितरण किया जाता है !
किसी की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचना अपना मकसद नहीं बस एक जन चेतना अभियान जिसके तहत जीवन का मोल समझने का प्रयास.......!
आये इस संवेदनशील विषय पर अपनी बहुमूल्य अभिव्यक्ति दें !

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