वक़्त 

मैंने पत्थरों में भी अकांक देखे हैं ,
जिसके निश्चल धरा में जीवन बसते हैं I
मैंने पत्थरों में भी फूल देखे हैं ,
वक्त से टूटे वीराने भी महकते देखे हैं I
मैंने पत्थरों में भी फूल देखे हैं ,
जीवन पतवार धोते रोते हुए देखे हैं !
मैंने पत्थरों में भी इंसान देखे हैं ,
अपनी पीड़ा मैं दूसरों के प्रेरक बनते देखा है I
मैंने पत्थरों में भी फरेब देखे हैं ,
रिश्तों के बीम मसलते ,नासूर बनते घाव देखे हैं I
मैंने पत्थरों में भी आपदाएं भी देखी हैं ,
अपने वजूद खोकर इंसानियत मिटते देखा है इ
मैंने पत्थर में भी भगवान देखे हैं ,
दूसरों के जीवन हेतु समर्पित इंसान देखे हैं !!

Popular posts from this blog